मध्यप्रदेश सेशन जज के बर्खास्तगी के निर्णय को सही ठहराया सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने !

@प्रदीप मिश्रा री डिस्कवर इंडिया न्यूज़ इंदौर (Rediscvoerindianews.com)

सेशन जज (ADJ) लीना दीक्षित जज के गरिमामय पद के काबिल नहीं है।

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एसआर भट और जस्टिस एस धूलिया की बेंच ने कहा आप किसी व्यक्ति को हत्या का दोषी ठहराकर पांच साल की जेल की सजा कैसे दे सकती हैं? और, फिर आपने दोष की दफा बदलकर 304ए कर दिया। ऐसा करते वक्त आपने यह भी नहीं सोचा कि आपको अपना फैसला बदलने का अधिकार है भी या नहीं। आप धारा 302 और 498ए (दहेज प्रताड़ना) का मतलब जानती हैं।’ यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने मध्य प्रदेश में एडीजे रहीं लीना दीक्षित की बर्खास्तगी के मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने भी सोमवार को मुहर लगा दी है .अब लीना दीक्षित का जज बने रहने की सभी संभावना खत्म हो गई। एडीजे के तौर पर लीना ने एक व्यक्ति को दहेज हत्या का दोषी ठहराते हुए भी बहुत कम सजा दी थी।

सुप्रीम कोर्ट Supreme Court ने एडिशनल सेशंस जज (ADJ) लीना दीक्षित की रिट पिटिशन को खारिज कर दिया है। दहेज हत्या के मामले में दोषी को नाम मात्र की सजा देने के कारण प्रशासकीय समिति ने उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की थी जिसे मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की फुल बेंच ने स्वीकार कर लिया। लीना ने एमपी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ ही सुप्रीम कोर्ट Supreme Court गई थीं, लेकिन उन्हें यहां से भी राहत नहीं मिली।

लीना दीक्षित के एडीजे कोर्ट में पति द्वारा पत्नी को जिंदा जलाने का मामला सामने आया था। पत्नि ने दम तोड़ने से पहले सारी घटना बता दी। घटना स्थल से केरोसिन तेल की मौजूदगी की भी पुष्टि हुई और तय हो गया कि पति ने ही पत्नी की निर्ममता से जान ली है। बतौर एडीजे लीना दीक्षित ने पति को दफा 302 के तहत हत्या का दोषी तो ठहराया, लेकिन उसे सिर्फ 5 वर्ष की जेल की सजा सुनाई। धारा 302 के तहत दोषी ठहराए गए व्यक्ति को मृत्यु दंड या उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।

अपराध की गंभीरता और सजा में नरमी का मामला जोर पकड़ा तो लीना ने खुद ही अपने जजमेंट की समीक्षा की और दफा 302 के बदले दफा 304ए के तहत दोषी बता दिया जिसमें ज्यादा से ज्यादा दो वर्षों की सजा होती है। जबकि दहेज हत्या का मामला दफा 304बी के तहत आता है और इसमें कम-से-कम सात साल की सजा का प्रावधान है जो अधिकतम उम्रकैद तक बढ़ाई जा सकती है।

प्रशासकीय समिति ने जज के इस व्यवहार को पद की गरिमा के खिलाफ माना और उन्हें हटाने की सिफारिश की। समिति ने अपनी सिफारिश में कहा कि लीना दीक्षित ने ऐसी गलती की है जिसका बचाव नहीं किया जा सकता है। ऊपर से अनधिकृत तरीके से 302 की दफा बदलकर 304ए कर देना से  यह स्पष्ट है कि लीना दीक्षित जज के गरिमामय पद के काबिल नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट Supreme Court में लीना का केस जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एसआर भट और जस्टिस एस धूलिया की बेंच के पास गया। लीना ने अपने बचाव में दलील दी कि यह उनकी पहली गलती है और बारबार कहा कि चूंकि यह उनकी पहली और एकमात्र गलती है, इसलिए उन्हें पद से हटाना ठीक नहीं होगा। लीना की इन दलीलों से  सहमत नहीं हुआ सुप्रीम कोर्ट Supreme Court.

@प्रदीप मिश्रा री डिस्कवर इंडिया न्यूज़ इंदौर (Rediscvoerindianews.com)

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