नोबेल पुरुष्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने भी काटी है जेल

10 दिन काटे है जेल में !

1983 में जेएनयू की नई ऐडमिशन पॉलिसी के खिलाफ आंदोलन करने के चलते 10 दिन की जेल काटनी पड़ी थी।

इंदौर। अर्थशास्त्र का नोबेल जीतने वाले अभिजीत विनायक बनर्जी की प्रतिभा 1980 के दशक में जेएनयू के छात्र रहते हुए ही सामने आने लगी थी। उस दौरान भी उनके साथियों और प्रफेसर्स को लगता था कि वह कुछ बड़ा जरूर करेंगे। हालांकि शायद ही किसी ने सोचा हो कि वह एक दिन यूं नोबेल पुरस्कार जीत कर पुरे विश्व में छा जाएंगे। इकनॉमिक्स में उन्होंने जब एमए पूरा किया तो वह अपने बैच के ही टॉपर नहीं थे बल्कि सबसे ज्यादा ग्रेड हासिल कर सेंटर का भी रिकॉर्ड तोड़ा था।

1983 में जेएनयू में ऐडमिशन पॉलिसी में ‘सुधार’ के खिलाफ आंदोलन किया था। वह ऐसे 300 छात्रों में से एक थे, जिन्हें आंदोलन करने के चलते 10 दिन की जेल काटनी पड़ी थी। अभिजीत को अच्छा खाने और नई जगहों में जाने का हमेशा से शौक था।

अभिजीत महज इकनॉमिक्स के ही शानदार स्टू़डेंट्स नहीं थे बल्कि व्यवहारिक भी थे। स्टूडेंट्स के बीच हमेशा से चर्चित रहे उनको पढ़ने वाले टीचर्स बताते है कि वह कभी क्लासरूम में प्रफेसर्स से चर्चा के दौरान बहस से पीछे नहीं हटते थे। हालांकि इस सबके बीच उन्होंने हमेशा टीचर्स का सम्मान बरकरार रखा।

कैंपस में किसी छात्र संगठन से नहीं जुड़े थे लेकिन उन्होंने कैंपस में अपने विचारों को मुखरता से रखा और जहां भी असहमति हुई, उसे व्यक्त किया।

उनकी माँ निर्मला बेनर्जी ने कहा मैं बेटे की इस कामयाबी से बहुत खुश हूं, मेरी बात तो नहीं हुई उससे क्योंकि अमेरिका में अभी रात होगी और शायद वह अभी सो रहा होगा। वह हमेशा से अनुशासित रहा है, एक होनहार छात्र जिसने हमेशा पढ़ाई पर ध्यान दिया। अभिजीत की मां सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज में प्रोफेसर रह चुकी हैं और उनके पिता दीपक बनर्जी प्रेसिडेंसी कॉलेज जो अब विश्वविद्यालय है में अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष रह चुके हैं।

58 वर्षीय अभिजीत बनर्जी अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (एमआईटी) में अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं। बनर्जी ने साल 1981 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री (बीएससी) लेने के बाद 1983 में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई की। इसके बाद 1988 में उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी पूरा किया।

भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और उनकी पत्नी एस्थर डफ्लो को साल 2019 के लिए अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा। उनके साथ ही अर्थशास्त्री माइकल क्रेमर को भी इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया है। तीनों को संयुक्त रूप से यह सम्मान दिया जाएगा। नोबेल पुरस्कार समिति ने कहा कि तीनों अर्थशास्त्रियों को ‘अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गरीबी कम करने के उनके प्रयोगात्मक नजरिए’ के लिए पुरस्कार दिया जा रहा है। अभिजीत बनर्जी आर्थिक मुद्दों पर बहुत से लेख लिख चुके हैं। वह ‘पुअर इकनॉमिक्स’ समेत चार किताबें लिख चुके हैं। इस किताब को गोल्डमैन सैक्स बिजनस बुक ऑफ द इयर का अवार्ड मिला| उन्होंने दो डॉक्युमेंटरी फिल्मों का निर्देशन भी किया है। वह 2015 के बाद डेवलेपमेंट एजेंडा पर बनी यूएन सेक्रटरी जनरल के हाई-लेवल पैनल में भी रह चुके हैं।

अभिजीत बनर्जी के साथ-साथ उनकी पत्नी एस्थर डफलो को भी अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिला है। डफ्लो भी एमआईटी में पढ़ाती हैं और पॉवर्टी एलेविएशन ऐंड डिवेलपमेंट इकनॉमिक्स की प्रोफेसर हैं। फ्रांसीसी मूल की अमेरिकी अर्थशास्त्री डफ्लो ने इतिहास और अर्थशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई के बाद 1994 में पैरिस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स (तब डेल्टा के नाम से मशहूर था) से एमए की डिग्री हासिल की।

साल 1999 में उन्होंने एमआईटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी किया। एमआईटी में उन्होंने अभिजीत बनर्जी की देखरेख में ही अपनी पीएचडी पूरी की क्योंकि बनर्जी उनके जॉइंट सुपरवाइजर थे। इस दौरान दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया और दोनों एक साथ रहने लगे। 2015 में दोनों ने औपचारिक तौर पर शादी कर ली।

अभिजीत बेनर्जी के पहले इन भारतीयों को भी मिल चूका है नोबेल

रवींद्रनाथ टैगोर (1913 में साहित्य के लिए ), सीवी रमन (1930 में भौतिकी के लिए ), हर गोविंद खुराना (1968 में मेडिसिन के लिए ), मदर टेरेसा (1979 में शांति के लिए ), सुब्रमण्यन चंद्रशेखर (1983 में भौतिकी के लिए ), अमर्त्य सेन (1998 में अर्थशास्त्र के लिए ), वेंकटरमण रामकृष्णन (2009 में रसायन के लिए ), कैलाश सत्यार्थी (2014 में शांति के लिए )।

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