@री डिस्कवर इंडिया न्यू्‍ज इंदौर

उपराष्ट्रपति जी!! जब देश का राष्ट्रपति (महामहिम) संविधान और कानून की रक्षा के लिए संसद और न्यायपालिका को निर्देश नहीं दे रहा है! तब सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देश क्यों नहीं दे सकता है?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक मामले में राष्ट्रपति को समय सीमा में निर्णय लेने के लिए निर्देशित करने के मामले में, सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को निर्देशित नहीं कर सकता है! और इस बात पर चिंता जताई की सुप्रीम कोर्ट सुपर संसद की तरह कार्य कर रहा है।

यह बहुत गंभीर चिंतन का विषय है कि, इस देश में राष्ट्रपति बनने के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता है कि नहीं? यदि नहीं है? जो की वाकई नहीं है! तो फिर सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को दिशा निर्देश क्यों नहीं दे सकता है?भविष्य में ऐसा भी हो सकता है कि राजनैतिक पार्टियां किसी भी ऐरे गैरे – नथु गैरे, अशिक्षित और गँवार कठपुतली व्यक्ति को राष्ट्रपति के चुनाव में खड़ा कर दे! और बहुमत के आधार पर चुनाव जितवा कर राष्ट्रपति के ओहदे पर बैठा दे? तो फिर क्या होगा? राज्यपालो के हालात देख लो, सब के सब कठपुतली है?

यू तो राष्ट्रपति के पास असीमित शक्तियां है, लेकिन वह जिस पार्टी के बहुमत से चूना जाता है, उसकी रबर स्टैंप कठपुतली होता है!

भारत मे राष्ट्रपति का चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है, राष्ट्रपति सीधे जनता द्वारा नहीं चुना जाता है, राष्ट्रपति को चुनते हैं राज्यों के विधायक और संसद के सांसद! जिस पार्टी के पास बहुमत होगा उसी का राष्ट्रपति चुना जाता है!

महत्वपूर्ण यह नहीं है कि न्यायपालिका किसे निर्देशित कर सकती है और किसे नहीं, महत्वपूर्ण यह है कि न्यायपालिका की जवाबदेही, समय सीमा में न्याय की सुनिश्चितता और न्यायपालिका मे सम्पूर्ण पारदर्शिता आवश्यक है।

न्यायपालिका मे भ्रष्टाचार, निचली अदालतों में गैर कानूनी और बिना जूडिशल माइंड इस्तेमाल कर स्व विवेक से निर्णय करने की प्रव्रती पर रोक लगाना आवश्यक और महत्वपूर्ण कार्य को राष्ट्र हित मे और जनता के हित मे करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को निर्देशित करना चाहिए। 

@प्रदीप मिश्रा री डिस्कवर इंडिया न्यू्‍ज इंदौर

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