@री डिस्कवर इंडिया न्यू्ज इंदौर
ये कौन से कानून मे लिखा है कि यदि कोई कॉर्पोरेट या व्यवसायी, शहर हित और समाज के हित में कोई काम करता है तो अपना या कंपनी का नाम लिख नहीं सकता है?
प्रजातंत्र में कानून, नीतियां, नियम जनता की भलाई के लिए बनाए जाते है। जिस भी काम से बड़े पैमाने पर जनता की भलाई और उसके स्वास्थ के लिए कोई सामाजिक कार्य अपने पैसों से किसी भी व्यावसायिक संस्थान द्वारा किया जाए तो किसी भी कानून को शिथिल या निरस्त किया जा सकता है। यह जनता की सरकार के स्वविवेक पर निर्भर है।
औरंगजेब धार्मिक स्थलों पर जाने, और धर्मान्ध कार्यो के लिए जजिया कर लेता था! तो वो इतिहास में क्रूर शाशक के रूप में जाना जाता है!
अब क्या इंदौर नगर निगम, यदि शहर में कोई अपने लाखो करोड़ों रुपये खर्च कर, जनता, समाज और शहर की भलाई के लिए कोई काम करेगा और उस पर अपने संस्थान या कंपनी का नाम लिख देगा तो उससे विज्ञापन के नाम पर औरंगजेब का जजिया कर वसूलोगे? यह भाजपा का शाशन है किसी औरंगजेब का नहीं!
भीषण गर्मी का दौर चल रहा है! सूरज आग उगल रहा है! शहर की सड़कों पर लाखो लोग दो पहिया वाहनों से अपने जरूरी कामों के लिए भरी दोपहर में आवागमन करते हैं!
इसमे बच्चे, बुढ़े, महिलाए और बुजुर्ग तक शामिल है। इन सभी वाहन चालकों और उनके परिवार के लिए चौराहे पर लाल बत्ती पर काफी समय रुकने के दौरान छाव की वयवस्था करने के लिए इंदौर नगर निगम की पहल पर, मानव कल्याण सामजिक संस्था के आग्रह पर लाखो रुपये खर्च कर शहर के कुछ जिम्मेदार कार्पोरेट, शैक्षणिक और व्यवसायिक संस्थान एक मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर छाव देने की व्यवस्था कर रहे हैं, और यदि उस स्ट्रक्चर पर अपने संस्थान और कंपनी का नाम लिख रहे हैं, तो इसमे गलत क्या है? जनता का या नगर निगम का पैसा तो नहीं ले रहे हैं! तो फ़िर कौनसा घोटाला हो गया?
और बात सिर्फ 2 महीने की है, यदि ये कार्पोरेट और व्यवसायी लाखो रुपये लगाकर स्ट्रक्चर नहीं खड़ा करते तो क्या होता?
नगर निगम टेन्डर निकालने, टेन्डर पास करने और वर्क ऑर्डर निकालने तक पूरी गर्मी निकाल देती? ठेकेदार द्वारा करोड़ों – अरबों के बिल दिए जाते! लाखो रुपये का भ्रष्टाचार होता! क्या यह सब करते?
एक और पहलू पर चिल्ला पुकार मची है कि ग्रीन नेट की परमीशन दी थी! भैय्या, भीषण गर्मी का दौर है, लू, गर्म हवाओ और आँधियों का मौसम है! कितनी देर और कितने समय तक ग्रीन नेट टिकेगी?
कई स्वयं सेवी संस्थाएं , कार्पोरेट और व्यवसायिक संस्थान भीषण गर्मी के मौसम में प्याऊ लगाते हैं, प्लांटेशन करते हैं, पुलिस को बेरियर देते हैं, स्कूलों और अस्पतालों में पंखे, वाटर कूलर, कूलर आदि लगवाते है! और उस पर अपनी संस्था का नाम लिख देते हैं, जो धर्मान्ध और सामाजिक परोपकार के लिए किए जाने वाले काम है! तो क्या उस पर भी टैक्स लगाओगे?
जब नेता, विधायक और राजनैतिक जनप्रतिनिधि, राजनैतिक, जन्मदिन या धार्मिक आयोजनों पर पूरे शहर को अवैध होर्डिंग से पाट देते हैं। सड़कों, चौराहों पर बड़े बड़े स्ट्रक्चर खड़े कर देते हैं! तब कोई विरोध नहीं करता है? किसी को नगर निगम के टेक्स की चिंता नहीं होती है? तो छाव के लिए स्ट्रक्चर खड़े करने और उस पर अपनी कंपनी या संस्थान का नाम लिखने पर इतना विरोध और हंगामा क्यों?
@प्रदीप मिश्रा री डिस्कवर इंडिया न्यू्ज इंदौर