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कलेक्टर करें अपने पॉवर का इस्तेमाल!

मप्र हाई कोर्ट ने भी निजी स्कूलों पर अंकुश लगाने के दिए निर्देश

इंदौर। मूक पशु, जंगली जानवरों की तो नियति है कि कुदरत ने उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा, लेकिन इंसानी बच्चों के इस हक पर डाका पडऩे लगे, तो फिर सभ्य समाज और जंगलराज में फर्क ही क्या रह जाएगा? यहां प्रस्तुत ‘शेरÓ कुछ इसी तरह की स्थिति को बयां करता है कि जब हम शहर, प्रदेश, देश के कर्णधारों को बेहतर शिक्षा नहीं दे सकते, तो शायर की सोच हकीकत लगती है कि जैसे जंगलराज ही चल रहा हो। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की मंशा अच्छी है कि कम से कम हर बच्चा 12वीं कक्षा तक तो पढ़ाई करे। उनकी सोच यह भी है कि गरीबों के बच्चों को भी निजी कान्वेंट स्कूल जैसी शिक्षा नि:शुल्क मिले। दौर जरूर बदला है एवं अब निजी स्कूलों में सीमित दायरे में आरक्षण भी होने लगा है, लेकिन शिक्षा के पावन मंदिरों को महलनुमा बनाने वाले धनकुबेरों की पैसों की भूख इतनी ज्यादा है कि उन्हें आरक्षित कोटे की चंद सीटें नि:शुल्क देने में काफी तकलीफ होती है।
शिक्षा के मंदिर बनते महल
काली कमाई का खेल!
शहर में स्थानीय धनकुबेरों ने शिक्षा के पावन मंदिरों को महलनुमा स्थिति में तब्दील कर दिया है। प्रदेश के बाहर के बड़े समूहों के स्कूल भी इंदौर में आ चुके हैं। इनके पास इतना पैसा आ कहां से रहा है? क्या आयकर विभाग की नजर नहीं पड़ती कि इनके निर्माण में काली कमाई भी लग रही है। भारी-भरकम फीस, हर साल वृद्धि के अलावा डोनेशन, फिर स्कूलों में प्रवेश के साथ ही शुरू हो जाता है अभिभावकों पर दबाव डालने का सिलसिला कि आपके बच्चे की यूनिफार्म के लिए फलां दुकानदार तय किया है। कापी-किताबें यहां से ही लेना पड़ेंगी। अगले साल फिर यूनिफार्म के कलर बदल गए, फिर वही प्रक्रिया। लूट का ये सिलसिला और भी तरीकों से सालभर ही चलता रहता है। विभिन्न आयोजन गतिविधियों के नाम पर अभिभावकों की जेबें खाली की जाती है। धनाढ्य वर्ग को तो खैर तकलीफ नहीं होती, लेकिन मध्यमवर्गीय परिवा इस तरह की लूट के बावजूद आह भी नहीं भर पाते और बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए स्कूली शिक्षा में ही कर्जदार हो जाते हैं और जब बच्चों की उच्च शिक्षा का समय आए, तो उनकी बेबसी कुछ इन शब्दों में निकलती है।

 

”कोस मत उस रात को
जो पी गई घर का सवेरा
रुठ मत उस ख्वाब से
जो हो सका न जग में तेराÓÓ
बच्चों को बेहतर भविष्य की चाह में हर रात सपना देखने वाले अधिकांश अभिभावकों की सुबह फिर मुफलिसी से ही शुरू होती है, क्योंकि आय के साध उतने ही सीमित है, हर रोज अपनी नौकरी, छोटे-मोटे व्यवसाय से आय अर्जित करने लोग बेबस होकर यही सोचते हैं कि हम भी धनाढ्यों के बच्चों की तरह ही अपने बच्चों को पढ़ाने में ही क्यों मजबूर हो रहे हैं। इधर निजी स्कूलों के संचालकों, धनकुबेरों को इससे कोई सरोकार नहीं है। बेतहाशा कमीशन काली कमाई के रूप में और जुड़ता ही जा रहा है।
प्रवेश प्रक्रिया शुरू कलेक्टर करें कार्रवाई
निजी स्कूलों में अगले सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। ऐसे में इंदौर के कलेक्टर आकाश त्रिपाठी एवं प्रदेश के हर जिले के कलेक्टरों को भी पहले से ही अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए प्रतिबंधात्मक आदेश लागू कर देने चाहिए, ताकि आने वाले माहों में कोई भी स्कूल के संचालक अभिभावकों पर कमीशनबाजी के चक्कर में अपने द्वारा तय दुकानदारों-व्यापारियों से युनिफार्म दबाव नहीं बना सकें।
अभिभावक भी करें तुरन्त शिकायत
जिन स्कूलों में भी इस तरह के दबाव बनाए जाए, वहां अपने बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावकों को तुरंत ही इसकी शिकायत कलेक्टर, प्रदेश सरकार को करना चाहिए, ताकि उन पर कड़ी कार्रवाई हो सके। अभिभावकों का भी जागरूक होना जरूरी है, ताकि कमीशनबाजी के चक्कर में बेहिसाब कालीकमाई करने वाले बेनकाब हो सके।

करोड़ों का कालाधन शिक्षा के पवित्र क्षेत्र में!
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशों में जमा धनकुबेरों के कालेधन की एक-एक पाई देश में वापस लाने की बात कह रहे हैं, जबकि शिक्षा के पवित्र क्षेत्र को व्यवसाय बनाने वाले धनकुबेरों की भी काली-कमाई से रोशन हो रहे ऐसे स्कूलों लग रहा करोड़ों-अरबों का ध कितना सफेद है, कितना काला है, ये तो साफ ही दिख रहा है कि डोनेशन-कमीशनबाजी का खेल इंदौर ही नहीं देशभर के ऐसे बड़े स्कूलों में जारी है और हर साल फीस में अपने हिसाब से मनमानी वृद्धि के बावजूद उसका कितना रिकार्ड रखा जा रहा है, ये भी जांच का विषय है, तो डोनेशन-कमीशनबाजी जिसका तो कोई रिकार्ड नहीं ऐसी काली कमाई भी करोड़ों में है, जिसे पकड़ा जाए, तो कई सरकारी स्कूलों को भी बेहतर बनाया जा सकता है। वैसे तो केंद्र सरकार हर साल बजट में शिक्षा के लिए भी अरबों रुपयों का फंड निर्धारित करती है, लेकिन उसका भी अधिकांश हिस्सा भ्रष्ट नेताओं-नौकरशाहों की भेंट चढ़ जाता है।
अच्छे दिनों के लिए खत्म हो वोटों की राजनीति!
इंदौर ही नहीं प्रदेश-देश के हर गरीब, निम्न मध्यम, मध्यमवर्गीय परिवारों जिनकी आबादी का प्रतिशत 80 के लगभग है, उनके बच्चों को निजी स्कूलों के समान बेहतर शिक्षा, वातावरण मिले, तभी लोग महसूस करेंगे कि अच्छे दिन आ रहे हैं, इसके लिए वोटों की राजीति भी आड़े नहीं आना चाहिए। वर्षों से ही शिक्षा के नाम पर अरबों का बजट, लेकिन सरकारी स्कूलों की हालत आज भी बदतर तो ये सब क्या है? सत्ता का सुख भोगने वाले कई नेताओं की सोच यह भी रही है कि हर कोई शिक्षित होगा, तो पैसा, शराब, कंबल आदि हथकंडों से गैर बुद्धिजीवी वर्ग के वोट हथियाना भी आसान नहीं होगा। लम्बे अर्से से चली आ रही इस तरह की मानसिकता को बदलने का साहस मोदी सरकार कितना दिखा पाती है, ये तो तभी संभव है, जबकि शिक्षा का व्यवसायीकरण बंद होगा। शिक्षा के ाम पर होने वाली लूट-खसोट सख्ती से रुकेगी।
एक स्कूल, दो फिर शाखाएं कैसे?
शिक्षा को पूरी तरह व्यापार बनाने वालों द्वारा पहले एक महलनुमा स्कूल, फिर दूसरा स्कूल फिर शाखाएं यह सब कैसे संभव है? कहां से आ रहा है इतना पैसा। बिल्डिंग फंड के नाम पर भी अभिभावकों की ही जेबों पर डाका डाल दिया जाता है। आज आम आदमी के लिए अपना छोटा-सा आशियाना बनाना मुश्किल है, और महलनुमा स्कूल एक के दो फिर दूसरे शहरों, प्देश तक बकायदा चेन के रूप में खुल रहे हैं, जैसे पंचसितारा होटलों की चेन शृंखला खुल रही है। इंदौर में भी ऐसे उदाहरण है। करोड़पति संचालक ने तो एक बार प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि 20 करोड़ रुपए लगा रहे हैं, तो कोई बैंकों से कर्ज नहीं लिया है, अब दूसरे व्यवसाय से कमाई आई तो कितनी काली कितनी सफेद किसी का भी ध्यान क्यों नहीं है। कोई बिल्डर है तो कोई तेल बेचकर स्कूल मालिक बन गए, तो किसी की कोयले की कमाई हो, किसी की अन्य उद्योग-व्यापार से सभी ने स्कूल शुरू कर दिए। फिर देश के बड़े धनकुबेरों की तो बात ही अलग है, उनमें टाटा, बिड़ला, अम्बानी और भी समूह है, जिनके स्कूलों, कालेजों की चेन देशभर में स्थापित हो रही है, लेकिन उनमें भी गरीब, निम्न मध्यम, मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चों की शिक्षा के लिए सीमित मात्रा में जगह दी जाती है, वो भी निजी स्कूलों में आरक्षण की शुरुआत के बाद से।आज जरूरत इस बात की है सभी स्कूलों पर बिना किसी दबाव के सख्ती से कार्रवाई की जाए और डोनेशन-कमीशनबाजी की कालीकमाई के खेल से तो आम लोगों को छुटकारा मिले, साथ ही इन स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को पढ़ाई के अधिकतम अवसर मिले।
आयुक्त के निर्देश कलेक्टरों को
गौरतलब है कि आयुक्त लोक शिक्षण भोपाल ने 16 मई, 2014 को मध्यप्रदेश के सभी कलेक्टरों को पत्र जारी किया था जिसमें आयुक्त ने साफ लिखा था कि स्कूलों और कापी-किताब व्यापारियों का एकाधिकार समाप्त करने हेतु कलेक्टरों के पास धारा 144 लागू करने के अधिकार हैं। कोर्ट ने जबलपुर कलेक्टर को इसी धारा के तहत प्रतिबंधात्मक आदेश लागू करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने साफ कहा है कि मामला जनहित से जुड़ा है, इसलिए कार्रवाई जरूरी है।
प्रवेश प्रक्रिया शुरू, कलेक्टर करें कार्रवाई
निजी स्कूलों में अगले सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। ऐसे में इंदौर कलेक्टर आकाश त्रिपाठी एवं प्रदेश के हर जिले के कलेक्टरों को भी पहले से ही अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए प्रतिबंधात्मक आदेश लागू कर देने चाहिए, ताकि आने वाले माहों में कोई भी स्कूल संचालक अभिभावकों पर कमीशनबाजी के चक्कर में अपने द्वारा तय दुकानदारों-व्यापारियों से यूनिफार्म खरीदी का दबाव नहीं बना सकें।
हाई कोर्ट ने भी कार्रवाई के दिए हैं निर्देश
मप्र हाईकोर्ट ने निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने सीबीएसई सचिव और राज्य के स्कूल शिक्षा विभाग के आयुक्त को आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए। मुख्य न्यायाधीश खानविलकर और जस्टिस वंदना कसरेकर की खंडपीठ ने जनहित याचिका अभ्यावेदन पर ये निर्देश दिए। मदनमोहन शकरगाये ने याचिका दायर की थी कि निजी स्कूल अभिभावकों को अनावश्यक लूटते हैं। फीस और प्रवेश शुल्क को कोई पैमाना नहीं है। सबकी मनमानी यूनिफॉर्म निर्धारित है, जिसे हर एक-दो साल में बदल दिया जाता है। याचिकाकर्ता ने स्कूल शिक्षा विभाग और सीबीएसई को अभ्यावेदन दे प्राइवेट स्कूल एक्ट बनाने की मांग की थी। ताकि इसका उल्लंघन करने वालों पर कानूनी कार्रवाई हो सके।
ये हैं प्रमुख मांगें
ठ्ठ निजी स्कूलों में प्रवेश शुल्क, ट्यूशन फीस और अन्य व्यय आदि में एकरूपता हो। ठ्ठ सभी स्कूलों के विद्यार्थियों के लिए एक ही ड्रेस कोड निर्धारित किया जाए। ठ्ठ कलेक्टर की निगरानी में स्थानीय निरीक्षण समिति का गठन किया जाए, जो शिकायतों का निवारण करे। ठ्ठ अनावश्यक पुस्तकें खीदने विद्यार्थियों और अभिभावकों को बाध्य नहीं किया जाए। ठ्ठ बसों और स्कूली वाहनों के लिए दूरी के हिसाब से किराया निश्चित किया जाए।

One thought on “निजी स्कूलों के संचालक डाल रहे लोगों की जेब पर डाका”
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