@री डिस्कवर इंडिया न्यूज इंदौर

एक प्रतिष्ठित अखबार का मालिक!! कौडियों के दाम में मिले IDA की लीज के प्लॉट को गिरवी रख बैंक के 70 करोड़ रुपए खा गया।  

 

इंदौर हाईकोर्ट ने बैंक मे गिरवी रखे IDA के प्लॉट को कानूनी रूप से बेचने या किसी दूसरे को देने की छूट प्रदान की!

अब क्या करेगा इंदौर विकास प्राधिकरण?

इंदौर विकास प्राधिकरण ज़मीनों को लीज पर देने के नाम पर सबसे बड़ा सरकारी भू माफिया है जो कुछ बड़े लोगों के हाथ मे खेल रहा है?

28 जनवरी 2025 को इंदौर हाईकोर्ट के माननीय जज विवेक रूसिया और गजेंद्र सिंह की डबल बेंच ने बैंक ऑफ महाराष्ट्र द्वारा इंदौर विकास प्राधिकरण के विरुद्ध दायर रिट याचिका में बैंक ऑफ महाराष्ट्र को नवभारत प्रेस के मालिकों द्वारा प्राधिकरण के लीज पर दिए गए 43500 स्क्वेयर फीट के प्लॉट को गिरवी रख 70 करोड़ से ज्यादा लोन की रकम को कानूनी रूप से वसूलने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी है।

इंदौर विकास प्राधिकरण IDA ने नवभारत प्रेस के मालिक प्रफुल्ल माहेश्वरी को ए.बी रोड स्थित प्रेस काम्प्लेक्स में न्यूज पेपर प्रिंटिंग प्रेस के लिए 43550 स्क्वेयर फीट का प्लॉट नंबर 6 किराये पट्टे (लीज) पर सन 1982 मे 30 साल के लिए दिया था। 

नवभारत प्रेस के मालिकों ने बैंक ऑफ महाराष्ट्र भोपाल से उपरोक्त IDA के प्लॉट को गिरवी रख 17 जून 2002 मे लोन प्राप्त कर लिया! यहां यह बात गौर करने वाली है कि 24 मई 2002 को इंदौर विकास प्राधिकरण ने नवभारत प्रेस के मालिकों को बैंक या किसी भी वित्तीय संस्थान से IDA द्वारा लीज पर दिए गए उपरोक्त प्लॉट को गिरवी रख लोन लेने के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) लिखित में प्रदान की थी? यदि इंदौर विकास प्राधिकरण उपरोक्त प्लॉट को गिरवी रखने का अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) जारी नहीं करती तो बैंक कभी भी नवभारत प्रेस के मालिकों को लोन नहीं देती। 

इंदौर प्राधिकरण की लोन लेने के लिए प्लॉट को गिरवी रखने की अनुमति पत्र के आधार पर प्रफुल्ल माहेश्वरी ने बैंक में उपरोक्त IDA के लीज प्लॉट के ओरीजनल दस्तावेज मय सेल डीड के गिरवी रख नवभारत प्रेस के नाम से बैंक ऑफ महाराष्ट्र भोपाल से लोन प्राप्त कर लिया!

वही दूसरी तरफ हाईकोर्ट में दायर एक रिट याचिका 3518 /1992 के आदेश दिनांक 9 दिसंबर 2005 के अनुपालन में इंदौर विकास प्राधिकरण ने अक्तूबर 2006 मे नवभारत प्रेस को दी गई उपरोक्त प्लॉट की लीज को निरस्त कर दिया था!
क्योंकि उपरोक्त केस में इंदौर विकास प्राधिकरण भी पार्टी था तो कैसे और किस अधिकार से प्लॉट को गिरवी रखने की अनुमति नवभारत प्रेस के प्रफुल्ल माहेश्वरी को दे दी?

जब इंदौर विकास प्राधिकरण को सन 2002 से ही पता था कि नवभारत प्रेस के मालिकों ने प्लॉट को गिरवी रख करोड़ों रुपये का लोन बैंक से प्राप्त कर लिया है! तो यह बात इंदौर विकास प्राधिकरण ने हाईकोर्ट में दायर किसी भी याचिका में जिसमें वह मुख्य प्रतिवादी था हाईकोर्ट को नहीं बताई?

सन 2011 मे जब बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने अपना तकरीबन 80 करोड़ रुपये बकाया की रिकवरी को लेकर प्रमुख अखबारों में उपरोक्त प्लॉट की बिक्री के लिए विज्ञप्ति प्रकाशित करवाई तब इन्दौर विकास प्राधिकरण ने बैंक ऑफ महाराष्ट्र को उपरोक्त प्लॉट को प्राधिकरण की संपत्ति बताकर बिक्री पर आपत्ति लेते हुए 29 जुलाई 2011 को नोटिस भेजा! लेकिन आज दिनांक तक नवभारत प्रेस से प्लॉट पर कब्जा नहीं लिया?

@प्रदीप मिश्रा री डिस्कवर इंडिया न्यूज इंदौर

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