पहले अपने चेले और 15 दिन पहले सांसद बने शंकर लालवानी से विरोध करवाना और अब खुद सामने आना क्या कोई राजनेतिक चाल है !

क्या अपनी राजनेतिक महत्वाकांक्षा और स्वार्थ की पूर्ती के लिए बिना जाने समझे ,अर्थ का अनर्थ निकालकर शुद्ध भारतीय सिर और पैर की तेल मालिश और चम्पी की योजना का सिर्फ “मालिश” शब्द के अंग्रेजी अर्थ “मसाज “को  विदेशो की तथाकथित बॉडी मसाज का अभिप्राय को मन मस्तिक से  गलत दिशा में सोचकर रेलवे के एक मंडल की तरफ से शुरू की जाने वाली एक छोटी सी योजना जिसमे लम्बी दुरी की यात्रा करने वालो की एक जैसे बैठे रहने और कम जगह की सीटो पर लेटने की वजह से होने वाली थकान और शारीरिक जकड़न,अकडन को दूर करने के लिए  सिर्फ सिर पैर की तेल मालिश और चम्पी की सेवा को विदेशी बॉडी मसाज के समकक्ष समझकर भारतीय संस्कृति और महिलाओ के सामने की दुहाई देकर मोदी सरकार के रेल मंत्री को विरोध का पत्र पहले अपने राजनेतिक पट्ठे और जुम्मा जुम्मा 15 दिन भी अभी नहीं बीते सांसद बने इंदौर भाजपा सांसद शंकर लालवानी से विरोध का पत्र सीधे रेल मंत्री को लिख कर भेजने के साथ ही उस पत्र को मीडिया को उपलब्ध करवाना और अब स्वयं सामने आना और उसी योजना का विरोध करना क्या दर्शाता है !? ये वही सांसद सुमित्रा महाजन है निजी स्कूलों में मनमानी फीस बढ़ोतरी के विरोध में गुहार लेकर लोकसभा अध्यक्ष और सांसद सुमित्रा महाजन के पास पहुंचे अभिभावकों को मदद करने या सांत्वना देने के बजाय उल्‍टा उन्‍हें बच्‍चों को सरकारी स्‍कूल में पढ़ाने की नसीहत दी थी जब पूर्व संभागीय संयुक्त संचालक लोक शिक्षण केके पांडे ने कहा कि निजी स्कूलों की बीमारी दूर करने की जरूरत है!इस पर सांसद ने कहा आप इसे बीमारी मत कहो… आपको बीमारी लगती है तो बच्चों को निजी स्कूलों में मत पढ़ाओ, सरकारी में पढ़ाओ।

 

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