यात्रियों को राहत : लखनऊ से जबलपुर लौट रही एक महिला प्रोफेसर के चोरी हुए पर्स में रखे थे लाखों के जेवर
जबलपुर। लखनऊ से जबलपुर लौटते वक्त एसी कोच में जबलपुर की एक महिला प्रोफेसर का पर्स चोरी हो गया, जिसमें लाखों के जेवर और रुपए थे। अब तक उस सामान का पता नहीं लग सका है। चोरी गए सामान की कीमत अब रेलवे को देना होगी। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने रेल यात्रियों को यह सुविधा दिला दी है। इसके लिए पीडि़त यात्री को उपभोक्ता फोरम में रेलवे की सेवा में कमी का मामला दायर करना होगा। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के मुताबिक रिजर्व कोच में अनाधिकृत व्यक्ति का प्रवेश रोकना टीटीई की जिम्मेदारी है और अगर वह इसमें नाकाम रहता है, तो रेलवे कीसेवा में खामी मानी जाएगी।
ऐसे मिला न्याय..
फरवरी में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने ट्रेन से चोरी गए महिला डॉक्टर के सामान की राशि का भुगतान रेलवे को करने का आदेश दिया। रेलवे ने दलील दी कि ये मामला रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में ही सुना जा सकता है, जबकि यात्री के वकील के मुताबिक ट्रिब्यूनल में सिर्फ रेलवे में बुक पॉर्सल के मामलों को ही सुना जाता है। न्यायमूर्ति सीके प्रसाद और पिनाकीचंद्र घोष की पीठ ने 17 साल पुराने इस मामले में रेलवे की दलील खारिज कर दी और फैसले में दखल से इंकार कर दिया।
यात्रियों को नहीं जानकारी
यह अधिकार यात्रियों के लिए जितना सुविधाजनक है, उतना ही रेलवे और पुलिस के लिए मुश्किल भरा। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि इसकी जानकारी यात्रियों को नहीं है और न ही इस जानकारी को उन तक पहुंचाने के लिए कोई कारगर कदम उठाए गए हैं। ट्रेन में चोरी होने के बाद रिपोर्ट दर्ज कराते वक्त पीडि़त को इस बारे में पुलिस द्वारा जानकारी नहीं दी जाती।
ये हैं आपके अधिकार
यह सुविधा सिर्फ स्लीपर या एसी कोच में रिजर्वेशन कराने वाले यात्रियों के लिए है। उपभोक्ता फोरम के जानकार एडवोकेट अरुण कुमार जैन बताते हैं कि रिजर्वेशन के दौरान यात्री से 2 रुपए सुरक्षा शुल्क लिया जाता है। इधर ट्रेन में स्लीपर कोच यात्री को दिया जाता है, जिसके बाद यह तय होता है कि आपने उसे ट्रेन में सोने का अधिकार दिया है और इस दौरान जो भी घटना होती है, उसका जिम्मेदार रेलवे ही होगा। ट्रेन के स्लीपर या एसी कोच में यात्रा करते समय यात्री का सामान चोरी होता है तो शिकायत दर्ज करते वक्त उससे उपभोक्ता फोरम का फॉर्म भरवाया जाता है। यदि 6 माह तक पुलिस उसका सामान नहीं तलाश पाती तो वह फॉर्म की कॉपी ले जाकर उपभोक्ता फोरम में मामला दर्ज कर सकता है, जहां पर रेलवे को पीडि़त को हर्जाना देना होता है।