Supporters of India's main opposition Bharatiya Janata Party (BJP) attend a rally being addressed by Gujarat's chief minister and Hindu nationalist Narendra Modi, the prime ministerial candidate for BJP, ahead of the 2014 general elections, at Guwahati in the northeastern Indian state of Assam February 8, 2014. REUTERS/Utpal Baruah (INDIA - Tags: POLITICS) - RTX18ER4

देश में अपना वर्चस्व जमाने में लगा है विदेशी निवेश

इंदौर। एक हजार सालों की विदेशी गुलामी और राजे-रजवाड़ों की शोषण आधारित सामंतवादी सोच से देश 1947 में आजाद हुआ। देश के लोगों को लगा कि अब खुशहाल हो जाएंगे। शुरुआती दौर के हुक्मरानों व स्वप्नदृष्टाओं ने सरकारी समाजवाद की अवधारणा पर देश के विकास की नींव रखी। टाटा, बिड़ला, किर्लोस्कर, बजाज, महिन्द्रा जैसे पूंजीपतियों और उद्योगपतियों ने देशभक्ति और राष्ट्रहित के जज्बे के साथ देश की जरूरतों को ध्यान में रखकर इसके चहुंमुखी विकास के लिए उद्योग-धंधों के साथ ही समाज हित में अस्पतालों, स्कूलों आदि का भी बड़े पैमाने पर विकास किया। लेकिन सन् 1990 आने तक राजतंत्र पर आधारित सामंतवादी सोच वाली पार्टियों की सरकारों और सरकारी भ्रष्टाचार ने स्वदेशी पूंजीवाद को पूरी तरह बर्बाद व ध्वस्त कर दिया।

    1991 में भारत ने सुधारों की शृंखला के जरिये अपनी नीतियों को एकदम पलट दिया। इसके तहत समाजवाद व्यवस्था की संस्थाओं को खत्म किया गया। उनके स्थान पर बाजारोन्मुख संस्थाओं को लाया गया। इस नए पूंजीवादी विकास ने भारत को विश्व की दूसरी सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था जरूर बना  दिया, लेकिन इसमें जनहित और समाजहित गौण हो गया या ये कहें कि लगभग गायब हो गया।  1991 के सुधारों के बाद करीब ढाई दशक गुजर चुके हैं, जब भारत ने खुला बाजार अपनाया था। मुक्त बाजार को अपनाकर भारत आर्थिक रूप से प्रगति कर रहा है। यह बहुत आश्चर्यजनक बात नहीं है। आज पूंजीवाद बड़ा पैसा लगाकर पूरे विश्व बाजार पर अपना वर्चस्व बनाने में लगा है और मोदी इस व्यवस्था के पैरोकार हैं।

पूंजीवाद सामान्यत: उस आर्थिक प्रणाली या तंत्र को कहते हैं, जिसमें उत्पादन के साधन पर निजी स्वामित्व होता है। पूंजीवादी विकास निजी स्वार्थ को सर्वोपरि रखता है,  इसे कभी कभी ‘व्यक्तिगत स्वामित्वÓ के पर्यायवाची के तौर पर भी प्रयुक्त किया जाता है, यद्यपि यहां ‘व्यक्तिगतÓ का अर्थ किसी एक व्यक्ति से भी हो सकता है और व्यक्तियों के समूह से भी। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि सरकारी प्रणाली के अतिरिक्त निजी तौर पर स्वामित्व वाले किसी भी आर्थिक तंत्र को पूंजीवादी तंत्र के नाम से बुलाया जा सकता है। दूसरे रूप में ये कहा जा सकता है कि पूंजीवादी तंत्र लाभ के लिए चलाया जाता है, जिसमें निवेश, वितरण, आय उत्पादन मूल्य, बाजार मूल्य इत्यादि का निर्धारण मुक्त बाजार द्वारा निर्धारित होता है।

पूंजीवाद का अर्थ हमेशा शोषण होता है, चाहे वह मनुष्य का हो, विज्ञान का हो, या प्रकृति का। उसका एकमात्र उद्देश्य सिर्फ मुनाफा कमाना है। अपनी पूंजी को बचाए रखना तथा मुनाफा कमाना किसी भी पूंजीवादी उद्यम की प्रमुख चिंता है, फिर चाहे वह उद्यम छोटी निजी फर्म हो या विशाल औद्योगिक समूह। उसकी यही चिंता, देश के नियमों, कायदे और कानून को तोड़ती नजर आती है। पूंजीवाद के अंतर्गत भौतिक उत्पादन मुनाफे के लिए किया जाता है। यह एक सर्वव्यापी प्रक्रिया होती है, जिसमें निवेश करने वाले का देश के विकास का संबंध न तो व्यक्ति या समाज की वास्तविक जरूरत के साथ होता है, न ही प्रकृति की क्षमता तथा उसकी सीमाओं के साथ। जिस व्यवस्था में ‘मुनाफाÓ सर्वोपरि हो, वहां कानून बनाकर देश का विकास करने का दावा करने की बात करने वाले हमारी आंखों में धूल झोंक रहे हैं।आज देश में पर्यावरण का विनाश पूरे जोर-शोर से हो रहा है। देशी ही नहीं बल्कि विदेशी बड़ी-बड़ी विशाल पूंजीवादी कंपनियां, मुनाफों के लिए देश के पहाड़ों, जंगलों, नदियों और हमारी अनमोल प्राकृतिक संपदा को बर्बाद कर रही हैं। यहां बसे हुए लोगों को उजाड़ा जा रहा है। ऐसा सिर्फ हिन्दुस्तान में ही नहीं, पूरी दुनिया में हो रहा है।देशी-विदेशी पूंजीपतियों के मुनाफों के लिए, तेल की रिफाइनरियों को भारत में या किसी दूसरे विकासशील देश में लगाया जाता हैं, जिससे तेलशोधन के दौरान, निकलने वाला लाखों टन कचरा हमारे पर्यावरण को संकट में डालता है। हमारे देश की सरकार इन्हीं देशी-विदेशी बड़ी-बड़ी कंपनियों के मुनाफों को बढ़ाने में सहूलियत देती है और हमारी जनता तथा पर्यावरण पर इसके घातक परिणामों पर पर्दा डालने का प्रयास करती है। 1984 का भयानक भोपाल गैस कांड आज भी हमारी याद में ताजा है, जिसके 30 वर्ष बाद और लगातार जन आंदोलन के बावजूद, हमारी सरकारें (चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की) न तो पूंजीवादी गुनहगारों को सजा दिलाकर पीडि़तों को इंसाफ  दिला पाई हैं, न ही प्रभावित इलाके में जहरीले अवशेषों को हटाकर लोगों को जीने का स्वच्छ पर्यावरण दे पाई हैं।  देश की  प्रमुख जीवनोपयोगी नदियां गंगा, यमुना सहित अन्य नदियां पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी हैं। इसका कारण, आम आदमी द्वारा फैलाई गई गंदगी नहीं, बल्कि भारी और विशाल मात्रा में उद्योगों से निकले खतरनाक अवशिष्ट पदार्थों का इन नदियों में प्रवाहित कर देना है। कारखानों से निकले खतरनाक रसायनकि पदार्थों को वैज्ञानिक तकनीकी या प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से कम हानिकारक बनाया जा सकता है, लेकिन पूंजीपति इन कचरों का शोधन करने पर  पैसा  खर्च नहीं करते हैं। यह सच्चाई कभी सामने नहीं लाई जाती। पूंजीवादी सरकारें पर्यावरण की सुरक्षा कानून आदि की खूब बातें करती हैं, पर वे खुद बड़ी-बड़ी कंपनियों की सेवा में लगी रहती हैं, इसलिए असली दोषियों के खिलाफ  कभी कदम नहीं उठा सकती हंै। पर्यावरण के विनाश के लिए आम  लोगों को दोषी बताकर, उनसे भारी टैक्स वसूले जाते हैं। इस देश के आम लोगों, मजदूरों और किसानों को पूंजीवादी विकास, जहां प्रकृति तथा मानव को ध्यान में न रखकर सिर्फ मुनाफे को केन्द्र में रखा जाता है, उसे ठुकराना होगा व उसके खिलाफ संघर्ष करना होगा। हमें वर्तमान सरकार की वैश्विक पूंजीवाद पर आधारित देश के विकास के मॉडल और बड़े-बड़े उद्योगपतियों के मुनाफों को ध्यान में रखकर बनाई गई सामाजिक-आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था को बदलना होगा। उसकी जगह मोदी व भाजपा के नीति बनाने वालों को समाजवाद यानी आम लोग, किसान  मजदूर-मेहनतकश के मुनाफे और विकास पर आधारित विचारधारा के बारे में सोचना होगा। मोदी अभी भारत में जिस विकास का मॉडल बता रहे हैं, उसके लिए धन की व्यवस्था पूंजीवाद की मानसिकता वाली पश्चिम की अवधारणा पर ही
होगी। मुक्त बाजार प्रणाली पर आधारित तथाकथित पश्चिमी उदारवादी सभ्यता, संस्कृति लाइफ स्टाइल एवं विचारधारा ही अब पूरे भारत में फैल जाएंगी।

अमेरिकन पूंजीवाद को देखें, तो आप पाएंगे कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में संपन्न एक प्रतिशत की कुल दौलत बाकी 99 प्रतिशत की दौलत का 70 गुना है। वैश्विक पूंजीवाद से देश के गांव, कस्बों और तहसीलों में रहने वाले 90 करोड़ भारतीयों को भला नहीं कर सकता है। विदेशी निवेशको का एकमात्र धर्म सिर्फ मुनाफा कमाना है, पर मोदी के समर्थक इसे देश के विकास से जोड़ते हैं। पूंजीवाद के साथ जुड़ा विकास शहरी वर्ग का विकास है, जिसमें बेशक बौद्धिक, ज्ञान-विज्ञान, कलाओं आदि का विकास सम्मिलित है। जहां एक ओर पंूजीवादी विकास से  शहरी वर्ग को फायदा पहुंचता है, वहीं समाज का बाकी बड़ा हिस्सा जो गांवों और कस्बो व तहसीलों में रहता है। इसी विकास से पहले से बदतर स्थिति में पहुंच जाता है आजकल भारत में  पाटीज़् को सवोज़्परि मानना, यहां तक कि देश के संविधान में राष्ट्र से ऊपर मानना अपने आप में गलत है। यह विकृत समझ है कि पार्टी सर्वोपरि है। व्यक्ति के अधिकार, राष्ट्र के अधिकार, पार्टी के अधिकार और इससे भी आगे बढ़कर वे तमाम मानवाधिकार, जिन्हें मनुष्यों ने सारी दुनिया में संघर्ष के जरिए अर्जित किया है। उनका संरक्षण करना किसी भी पार्टी का फर्ज है। ‘पूंजीवाद का हमेशा कोई न कोई केंद्र रहा है। पहले यदि इंग्लैंड का वर्चस्व था, तो हाल में अमेरिका का आधिपत्य रहा है। वैश्विक पूंजीवाद अपने साथ अपनी संस्कृति, लाइफस्टाइल व संस्कार भी लेकर आता है। पूंजीवाद ने औद्योगिक क्रांति लाकर कई सामाजिक संकटों पर काबू पाया है और नए संकटों को जन्म दिया है। मजदूर वर्ग और समाज को विभिन्न किस्म की जड़ताओं और रूढिय़ों से मुक्त किया है। उत्पादन के क्षेत्र में नित नई क्रांतियां सामाजिक परिवर्तनों को जन्म देती हैं और यही पूंजीवाद की सफलता का रहस्य है।

क्या विदेशी व देशी निवेशक गांव में निवेश करेंगे?

पिछले ढाई दशकों में देश का विकास भी बेतरतीब हुआ है। देश की आधी से ज्यादा जनता जो गांवों में रहती है, उसका जीडीपी में योगदान मात्र 15 प्रतिशत है। बेरोजगारी तथा शहरों की ओर पलायन रोकने के लिए बहुत जरूरी कि गांवों में ही कृषि आधारित व्यवसाय लगाए जाएं। देश में 80 करोड़ लोग सिर्फ 20 रुपए रोज पर गुजारा करते हैं। रोजगार, आर्थिक उन्नति, शिक्षा, पोषण, घर का विकास मोदी की प्राथमिकता होना चाहिए। क्या वैश्विक निवेशक ग्रामीण भारत में निवेश करेंगे?

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