व्यापमं घोटाला : मध्यप्रदेश सरकार ने
इंदौर। व्यापमं घोटाला सिर्फ-सिर्फ पीएमटी प्रवेश परीक्षा तक ही सीमित नहीं है, यह फर्जीवाड़ा प्रदेश की समस्त सरकारी नौकरियों की भर्ती में बड़े पैमाने पर फर्जी तरीके से अरबों रुपए का लेन-देन कर लाखों अपात्र लोगों को नियुक्ति देने का बहुत बड़ा सरकारी माफिया नेटवर्क है, जिसमें राजभवन से लेकर मुख्यमंत्री निवास तक के आला अफसर, प्रशासनिक अधिकारी, मंत्रियों, राजनेताओं, बड़े उद्योगपति, प्रायवेट कॉलेजों के चेयरमैन से लेकर पुलिस के आला अफसर, वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सभी मिले हुए हैं। फिर चाहे वह पटवारी भर्ती हो, संविदा शिक्षक वर्ग 1, 2, 3, सेल्स टैक्स, महिला व बाल विकास विभाग, पुलिस आरक्षक, वनरक्षक, सबइंस्पेक्टर जैसी भर्तियां हों, जिनका काम लोगों को कानूनी रूप से सुरक्षा प्रदान करना है। दुग्ध संघ में भर्ती का मामला हो या खाद्य विभाग में नाप-तौल इंस्पेक्टर बनना हो। 25 लाख से 1 करोड़ रुपए तक लाओ और नौकरी पाओ। यही एकमात्र योग्यता की आवश्यकता है। पिछले 10 सालों से इस प्रदेश में यही सब चलता रहा है और सरकार के मुखिया कहते हैं कि हमें पता नहीं है हम जांच करवा रहे हैं। क्या यह संभव है?
जिस एमपीएमटी फर्जीवाड़े को लेकर इतना हो-हल्ला हुआ और हो रहा है, वास्तव में उसकी जांच में भी उतना ही फर्जीवाड़ा हुआ है। इसमें न केवल सैकड़ों निर्दोष, मेधावी और गरीब डॉक्टर छात्रों (कई के पालकों को भी, बिना किसी सबूत) को उनकी जिंदगी व कॅरियर को तहस-नहस कर जेलों में डाल दिया गया और डाला जा रहा है, बल्कि वास्तविक गुनहगार छात्रों व उनके राजनीतिक आकाओं पर भी सुनियोजित तरीके से जांच भी नहीं आने दी गई? वहीं जिन छात्रों को साजिश का शिकार बनाया गया, वे मुख्यत: झाबुआ, बड़वानी, धार, खरगोन, खंडवा, आलीराजपुर, शहडोल, सिवनी व बैतूल जैसे पिछड़े व आदिवासी बहुल जिलों के हैं।
दस्तावेजों सबूतों से पता चला कि सैकड़ों होनहार डॉक्टर छात्रों की जिंदगी व कॅरियर को तहस-नहस कर जेलों में डालने का कृत्य व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) ने जिस तथाकथित कम्प्यूटर एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर किया, वही शक के घेरे में हैं, क्योंकि इसका गठन ही घोटाले के मुख्य आरोपी डॉ. पंकज त्रिवेदी द्वारा किया गया था। यही नहीं, इसी कमेटी के फार्मूले के आधार पर 2012, 2011, 2010, 2009 व 2008 के डॉक्टरों व छात्रों पर भी नकल करने का आरोप लगाकर व्यापमं ने परीक्षा निरस्त की है, किंतु कमेटी के किसी भी सदस्य को एसटीएफ ने कोर्ट में गवाह नहीं बनाया। वह व्यापमं द्वारा किए गए अपने अपराधों से खुद को बचाने के लिए छलावा मात्र है। उसकी रिपोर्ट का कोई ठोस दस्तावेजी सबूत या कानूनी आधार ही नहीं है। किसी भी परीक्षा केंद्र में न तो नकल करते किसी ने देखा, न ही नकल करते किसी ने पकड़ा। न ही किसी परीक्षा केंद्र के पर्यवेक्षकों को आरोपी बनाया करते किसी ने पकड़ा। 28.1.14 को पत्र क्रमांक समनि/एसटीएफ/मुख्यालय/2014- एचक्यू-89 के माध्यम से 150 छात्रों की सूची के साथ डायरेक्टर चिकित्सा शिक्षा, सतपुड़ा भवन, भोपाल को संबंधितों के विरुद्ध अपने स्तर पर कार्रवाई करने को कहा, तो उन्होंने एसटीएफ से प्राप्त इस पत्र के आधार पर व्यापमं को कार्रवाई करने के लिए लिखा पत्र क्रमांक/यूजी/प्रवेश/4/2014 इस पर डायरेक्टर व्यापमं ने (पत्र क्रमांक व्यापमं/5-प-1/29/2012 के द्वारा) जवाब दिया- आप को पता है कि 2012 में जो छात्र आप के अधीनस्थ मेडिकल कॉलेजों में एक वर्ष से भी अधिक समय से अध्ययनरत हैं, वे आप के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। हिलाजा इनके विरुद्ध कोई कार्रवाई करना व्यापमं के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता। अत: आगे की कार्रवाई आप स्वयं करें।
सवाल जिनके जवाब चाहिए
- 5 सितंबर को डॉ. त्रिवेदी ने कमेटी बनाने का सुझाव दिया और 24 घंटे में चेयरमैन व्यापम ने अनुमति दे दी। इतनी जल्दी क्यों?
- 6 सितंबर को कमेटी के सदस्यों को नामित कर दिया, किसके कहने पर?
- कम्प्यूटर एक्सपर्ट कमेटी के सदस्यों की नियुक्ति किसने की?
- 6 सितंबर को कमेटी का गठन किया और एक दिन बाद 7 सितंबर को बैठक बुला ली, सभी छह सदस्य शामिल हुए, जबकि एक सदस्य डॉ. समर उपाध्याय जबलपुर में रहते हैं?
- सभी छह सदस्यों में से एक इंजीनियरिंग कॉलेज, दो पॉलीटेक्निक कॉलेज से, दो क्रिस्प नामक औद्योगिक संगठन से व एक यूआईटी आरजीपीवी से ही क्यों किए गए? यह जानते हुए भी कि ये सभी संस्थान, आरजीटीयू के अंतर्गत आते हैं, जिसके वाइस चांसलर डॉ. पीयूष त्रिवेदी हैं, जो डॉ. पंकज त्रिवेदी के भाई हैं?
- मात्र तीन घंटों में 7 सितंबर को ही 40,036 छात्रों में 30,195 छात्रों को एक्सपर्ट कमेटी ने संदिग्ध बता दिया, यह कैसे संभव है?
- डॉ. पंकज त्रिवेदी ने 27 नवंबर को 30,195 छात्रों की सूची को 876 क्यों और किसके कहने पर किया।
- 27 सितंबर को डॉ. त्रिवेदी के गिरफ्तार होते ही 30 सितंबर को एक्सपर्ट कमेटी की ताबड़तोड़ बैठक किसके कहने पर बुलाई गई?
- कमेटी की दूसरी बैठक में छह सदस्यों में से पैंच कैसे शामिल हुए और एक सदस्य डॉ. समर उपाध्याय क्यों नहीं शामिल हुए? बैठक की सूचना कब और कैसे दी?
- एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी पहली रिपोर्ट में जब 30,195 छात्रों के रोल नंबरों के साथ छेड़छाड़ करना बताया था, तो दूसरी रिपोर्ट में इस सूची को 876 (जो डॉ. त्रिवेदी के एसटीएफ को भी बताए थे) की कैसे कर दी? और इसे कैसे अनुमोदित कर दिया गया और किसके कहने पर?
- 4 अक्टूबर को डॉ. संजयकुमार जैन प्रभारी नियंत्रक ने संयुक्त नियंत्रकों की एक संयुक्त कमेटी का गठन किया, जिसने 415 छात्रों की परीक्षा व परिणामों को निरस्त कर उन्हें नकल का आरोपी बना दिया, किसके कहने पर और क्यों किया?
- 7 अक्टूबर को डॉ. जैन की अध्यक्षता वाली कमेटी की बैठक एसटीएफ से बचे हुए 92 छात्रों की सूची व साक्ष्य उपलब्ध करवाने बाबत हुई थी, जिसका पत्र 7 अक्टूबर को एसटीएफ के सहायक महानिरीक्षक आशीष खरे को भेजा था, तो फिर अचानक 8 अक्टूबर को 345 छात्रों को आरोपी बताकर उनकी परीक्षा निरस्त करने की अनुशंसा कर दी, जबकि कमेटी के पास सिर्फ 317 छात्रों की सूची थी, तो 345 को निरस्त करने की अनुशंसा कैसे कर दी?
- ठीक 24 घंटे बाद यानी 9 अक्टूबर को चेयरमैन व्यापम ने इस अनुशंसा को मानकर डायरेक्टर हस्ताक्षरित पत्र से 345 छात्रों की परीक्षा निरस्त कर दी। निर्णय लेने में इतनी जल्दबाजी क्यों?
- एसटीएफ ने अपनी जांच में व्यापम के सभी बड़े अधिकारी को आरोपी बनाया था, यहां तक तत्कालीन शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के खिलाफ भी दस्तावेज जुटा लिए थे, तो फिर व्यापम के ही कहने पर छात्रों के विरुद्ध एफआईआर किस आधार पर लिखी गई?
- पीएमटी 2013 की जांच में इस कमेटी के एक वरिष्ठ सदस्य डॉ. समर उपाध्याय अनुपस्थित थे। इसके बावजूद पीएमटी 2012 की नवंबर 2013 में हुई जांच में भी उन्हें कमेटी में शामिल किया गया और इसमें भी वे नहीं आए। इसी तरह एक और कमेटी सदस्य श्रीमती अजीता सथीश की बैठक में शामिल नहीं हुई, फिर भी चार सदस्यों द्वारा जांच क्यों की गई? आखिर इनके अनुपस्थित होने का क्या कारण था?
छात्रों का भविष्य…
इस पर डायरेक्टर व्यापमं ने (पत्र क्रमांक व्यापमं/5-प-1/29/2012 के द्वारा) जवाब दिया- आपको पता है कि 2012 में जो छात्र आप के अधीनस्थ मेडिकल कॉलेजों में एक वर्ष से भी अधिक समय से अध्ययनरत हैं, वे आप के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। लिहाजा इनके विरुद्ध कोई कार्रवाई करना व्यापमं के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता। अत: आगे की कार्रवाई आप स्वयं करें।
1 हजार करोड़ से ज्यादा के इस फर्जीवाड़े मात्र 2 करोड़ 75 लाख रुपए की जब्ती
1 हजार करोड़ से ज्यादा के इस फर्जीवाड़े में प्रवेश परीक्षा एवं सरकारी नौकरी की भर्ती परीक्षाओं में गिरफ्तार किए गए आरोपियों से मात्र 2 करोड़ 75 लाख की जब्ती बताई है। 25 से 30 लाख रुपए प्रति छात्र लेकर नकल के सरगनाओं ने इतना बड़ा फर्जीवाड़ा किया है तो बाकी रकम कहां है, इसे जब्त क्यों नहीं किया। जबकि आरोपियों के बयानों में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि फर्जीवाड़े से कमाई गई रकम हमने इंदौर और भोपाल में जमीन खरीदने, रीयल एस्टेट व लोगों को ब्याज पर दे रखी है और हम उसे जब्त कराने के लिए तैयार हैं। डॉ. पंकज त्रिवेदी इंदौर के एक प्रमुख इंजीनियरिंग कॉलेज में अपने भाई पीयूष त्रिवेदी के साथ पार्टनर हैं। इस कॉलेज में उन्होंने कितना पैसा लगाया है, इस बारे में एसटीएफ ने कोई खुलासा नहीं किया है।
ये वह कमेटी थी, जिसकी रिपोर्ट ने आरोप लगाया छात्रों पर कि इन्होंने नकल की थी
1 डॉ. समर उपाध्याय, लेक्चरर व एचओडी आईटी गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, जबलपुर 1 श्रीमती जूही जैन, गवर्नमेंट एसवी पॉलीटेक्निक कॉलेज, भोपाल 1 डॉ. डीके चौऋषि, लेक्चरर कम्प्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग, गवर्नमेंट वूमन पॉलीटेक्निक कॉलेज भोपाल 1 कुलदीपसिंह चौहान, सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर, क्रिस्प भोपाल 1 आशीष जैन, सर्वर एडमिनिस्ट्रेटर, क्रिस्प भोपाल 1 श्रीमती अजिता सथीश, सहायक प्रोफेसर, यूआईटी आरजीपीवी, भोपाल।
छह निजी मेडिकल कॉलेजों के कर्ताधर्ताओं की गिरफ्तारी नहीं की
प्रदेश के छह निजी मेडिकल कॉलेज इंडेक्स, अरविंदो, आरडी गार्डी, पीपुल्स और एलएन ने 378 सीटों पर गड़बड़ी की थी। सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के मुताबिक इन सीटों को मैनेजमेंट से सरेंडर कर स्टेट कोटे से भरा जाना चाहिए था। इस सिलसिले में एसटीएफ को शिकायत कर बताया कि किस तरह स्कोरर छात्रों ने इन निजी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने के बाद पैसे लेकर दाखिला वापस ले लिया। बाद में प्रायवेट कॉलेजों ने ये सीटें 35 से 50 लाख में दूसरे छात्रों को बेच दीं। इनके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कर गिरफ्तारी होना थी। इन प्रायवेट कॉलेज वालों ने मेडिकल की पीजी डिग्री के लिए छात्रों को एडमिशन 75 लाख से 1 करोड़ रुपए लेकर बेची। इसकी जानकारी एसटीएफ के पास है। छात्रों के स्टेट कोटे के एडमिशन में आरक्षण के नियम का पालन नहीं किया गया। लेकिन इस मामले में प्रकरण दर्ज नहीं किया। चिरायु मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डॉ. अजय गोयनका के मोबाइल नंबर 98260-40230 पर पीएमटी फर्जीवाड़ा के मुख्य सरगना सुधीर राय के मोबाइल नंबर 94259-13422 से दोनों तरफ से 50 बार कॉल एवं एसएमएस के जरिए 1-9-2012 से 28-9-2013 के बीच दर्शाई गई है। इसकी जानकारी एसटीएफ ने कोर्ट में चार्ज शीट में दी है। इसके अलावा आरडी गार्डी कॉलेज के डायरेक्टर डॉ. विजय महांडिक के मोबाइल नंबर 98270-74344 पर फर्जीवाड़े में गिरफ्तार किए गए। जीनस वाडिया के पिता करणसिंह वाडिया की बातचीत के डिटेल भी मौजूद हैं।