छोटे अपराधों के लिए अपराधियों को सजा दिलाने के लिए न्यायालय मे मुकदमा कायम करने से बेहतर है कि पुलिस थानों को अधिकार मिले उन्हें न्यूनतम सजा से दंडित करने का!

सेन्टर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपइंग सोसाइटी( CSDS) ने देश की पुलिस को लेकर जारी रिपोर्ट – स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया मे कई चौकाने वाले खुलासे किए हैं!
38 फीसदी पुलिस वालों का कहना है कि किसी प्रभाव शाली व्यक्ति के अपराध की जांच में उन्हे राजनीतिक नेताओं का दवाब झेलना पड़ता है!
60 फीसदी पुलिस वालों को ट्रांसफर झेलना पड़ता है यदि वो राजनीतिक दवाब को नहीं मानते हैं तो

CSDS रिपोर्ट में  काम का बोझ की वजह से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, घर में समय न दे पाना जैसे कारण तो स्पष्ट है!
लेकिन रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है कि 63 फीसदी पुलिस कर्मी अपने सीनियर अधिकारी के घर के निजी काम भी निपटाते हैं! 33 फीसदी महिला पुलिस कर्मी और 36 फीसदी पुलिस कर्मी अपने काम से तंग आकर पेशा बदलना चाहते हैं!
बड़े अधिकारियों को सर्विस के दौरान ट्रेनिंग के ज्यादा अवसर मिलते हैं! कांस्टेबल, ASI व अन्य जूनियर लेवल के अधिकारियों की तुलना में!पिछले 7 सालो मे देश की कुल पुलिस फोर्स का मात्र 6 फीसदी पुलिस बल को सर्विस के दौरान ट्रेनिंग दी गई है!

रिपोर्ट में बताया गया है कि मध्यप्रदेश मे 2012 – 2016 तक 27.7 फीसदी महिलाएं, 20.1 फीसदी एससी, 21.8 फीसदी एसटी व 9.9 फीसदी ओ बी सी कैटेगरी के अधिकारी ASI से लेकर डी एस पी रैंक मे पदस्थ है! बड़े आश्चर्य की बात है कि इस से बड़ी रैंक के अधिकारियों का डाटा नहीं रखा जाता है!

पूरे भारत में पुलिस वालों को तकरीबन 11 से 18 घंटे रोज काम करना पड़ता है सिर्फ नागालैंड को छोड़कर वहा पुलिस की औसत ड्यूटी सिर्फ 8 घंटे की है!
60 फीसदी पुलिस वालों के परिवार उन्हें मिले सरकारी क्वार्टर की स्थिति से काफी नाराज व असुंतुष्ट हैं!

40 फीसदी पुलिस वालो को अपने उच्च अधिकारियों की बदतमीजी पूर्ण भाषा से शिकायत है!

तकरीबन 50 फीसदी पुलिस वाले अपने परिवार के साथ कुछ दिनों के लिए किसी धार्मिक यात्रा, या घूमने फिरने के लिये कोई टूर पर नही जा पाते हैं!
46 फीसदी पुलिस वालों का यह अनुभव है कि जब भी किसी परिस्थिति में सरकारी वाहन की की आवश्यकता पड़ी तो उपलब्ध नहीं होता है!
40 फीसदी पुलिस स्टाफ की कमी की वजह से घटना स्थल पर टाइम पर नही पहुंच पाती है!
42 फीसदी थानों में फोरेंसिक जांच के लिए कोई व्यवस्था नहीं है!

37 फीसदी पुलिस वालों को मानना है कि छोटे अपराधों के लिये मुकदमा दर्ज कर न्यायालय से सजा दिलवाने से बेहतर है कि पुलिस थानों को अधिकार मिले उन्हें न्यूनतम दंड से दंडित करने का.

80 फीसदी पुलिस वालों का कहना है कि अपराधियों से सच उगलवाने के लिए उन्हें मारना सही है!

लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि मध्यप्रदेश पुलिस काफी बेहतर है और राज्यों के प्रति

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *