एक तरफ पुलिस और व्यवस्था का संवेदनहीन क्रूर चेहरा, दूसरी तरफ कलेक्टर की संवेदनशीलता

शाबास! और सेलूट सागर कलेक्टर प्रीति मैथिल नायक

10 किलो गेहूं के लिए मंदिर से 250 रुपए निकालने वाली 12 साल की बच्ची की जमानत के लिए सागर कलेक्टर प्रीति मैथिल नायक खुद पहुंची कोर्ट

इंदौर। सोमवार दिनांक 30 सितंबर को सागर कलेक्टर प्रीति मैथिल नायक को इस बात की जानकारी मिली की संवेदनहीन पुलिस ने 12 साल की एक बच्ची को मंदिर की दान पेटी से 250 रुपए निकालने और उससे 10 किलो गेहूं खरीदने के आरोप में चोरी की धारा लगाकर गिरफ्तार कर किशोर न्यायालय मे पेश किया चूंकि उस दिन पीठासीन अधिकारी छुट्टी पर थे तो पुलिस ने सागर से 450 किलोमीटर दूर 12 साल की बच्ची को बच्चों की जेल कहे जाने वाले किशोर बालिका सुधार गृह भेज दिया। (इस से बड़ा उदाहरण आप को पुलिस की संवेदनहीनता, क्रूरता, मानसिक दिवालियापन और कानून के कमीनेपन का देखने को इसी देश मे मिल ही सकता है)।
यह पता चलते ही सोमवार को सागर कलेक्टर प्रीति मैथिल नायक स्वयं जिला कोर्ट पहुची और उस गरीब परिवार की 12 साल की बच्ची की जमानत कारवाई और 10 हजार रुपए उसके गरीब मजदूर पिता को बच्ची को सागर से 450 किलोमीटर दूर शहडोल से लाने को दिए।
गौरतलब है कि बिन मां की 12 साल कि बच्ची जो झोपड़ी में अपने दो छोटे भाईयों के साथ बिना मां के अपने मजदूर पिता के साथ रहती है को उसके पिता ने 10 किलो गेहूं पिसवा कर लाने के लिए दिए थे। जब वह चक्की पर गेहूं डालने के कुछ देर बाद आटा लेने गई तो उस चक्की वाले ने कहा कि की तुम्हारे गेहूं की बोरी गुम हो गई है? यह सुनकर वो अबोध 12 साल की बच्ची जिस के दो छोटे भाई और पिता घर में रोटी के लिए इंतजार कर रहे थे को ध्यान कर परेशान होने की वजह से पास के मंदिर की दान पेटी से 250 रुपए निकाल लिए उससे उसने 180 रुपये का 10 किलों गेहूं खरीदा और 70 रुपए अपने स्कूल बेग मे रख लिए। चूंकि मंदिर की दान पेटी से 250 रुपए निकालने की समस्त घटना मंदिर में लगे कैमरे मे कैद हो गई और मंदिर प्रशासन की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने चोरी व गृह भेदन की धारा मे रिपोर्ट लिख 12 साल की बच्ची को गिरफ्तार कर लिया था।

इस संपूर्ण हृदय विदारक घटना का जो सबसे शर्मनाक पहलू

– जब पुलिस जांच में सम्पूर्ण घटना की सच्चाई पता लग गई थी तो क्या 12 साल की बिन मां की गरीब बच्ची के खिलाफ चोरी की एफआईआर लिखना पुलिस के लिए जायज था?
– मंदिर प्रशासन को घटना की सच्चाई पता होने के बाद बच्ची को पुलिस से छुड़वाने में स्वयं आगे क्यों नही आया?
– 12 साल की बच्ची को सिर्फ न्यायालय में जज के न होने की वजह से जमानत न मिल पाने के कारण सिर्फ 1 दिन के लिए 450 किलोमीटर दूर सागर से शहडोल भेजना पुलिस के मानसिक दिवालियापन और बच्चों के साथ क्रूरता को उजागर करता है?
– और सरकार व कानूनी व्यवस्था का सबसे शर्मनाक पहलू कि सागर से 450 किमी दूर किशोर न्यायालय जहां नाबालिग बच्चों को बच्चों की जेल भेजा जाता है?
– इस घटना के बाद यदि व्यवस्था न बदले तो सरकार, प्रशासन, कानून और जन प्रतिनिधियों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए?

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