modi11

भ्रष्टाचार निवारण के मौजूदा कानून की आड़ में

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 भारतीय संसद द्वारा पारित केंद्रीय कानून है, जो सरकारी तंत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में भ्रष्टाचार को कम करने के उद्देश्य से बनाया गया है, लेकिन इस कानून की धारा 19 के तहत प्रावधान है कि सरकार के पूर्व मंजूरी के बगैर लोकसेवकों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा। भले ही उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कितने ही संगीन आरोप हों। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि लोकसेवकों को प्रदत संरक्षण का अधिकार संवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भ्रष्ट लोकसेवकों को सजा मिलनी चाहिए, लेकिन ईमानदारों का संरक्षण भी जरूरी है, लेकिन ठीक उल्टा हो रहा है, यह कानून बेईमान अधिकारियों को संरक्षण प्रदान कर रहा है।

इंदौर। देश में सैकड़ों सरकारी कर्मचारी व आला अधिकारी देश की संसद द्वारा बनाए गए कानून की आड़ में खुलेआम अरबों-खरबों रुपए का भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी कर रहे हैं। इन सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों के भ्रष्टाचार में राजनैतिक व प्रशासनिक हस्तियां पूर्ण रूप से लिप्त हैं व भ्रष्टाचार निवारण के लिए बनाए गए कानूनों की आड़ में इन्हें पूर्ण संरक्षण प्रदान कर रखा है। जब कभी जांच एजेंसियां इनके भ्रष्टाचार के मामले में न्यायालय में मुकदमा चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति मांगती हैं तो इन भ्रष्ट अधिकारियों की फाइलों का निराकरण करने में सरकारें व भ्रष्ट प्रशासनिक अमला अव्वल तो देता ही नहीं है और यदि देता भी है तो सालों लग जाते हैं, तब तक ये भ्रष्ट अधिकारी बड़े आराम से अपने पद पर बने रहते हैं और अरबों रुपए के भ्रष्टाचार को अंजाम देते रहते हैं। गलतियां इस देश के कानूनों में है। जब मुकदमा चलाने की अनुमति ही नहीं मिलेगी तो सजा की बात करना बेमानी है। प्रधानमंत्री मोदी को शायद कानून के बारे में जानकारी नहीं है। मात्र दो साल की सजा को बढ़ाकर वो देश को बता रहे हैं कि हमारी सरकार भ्रष्टाचार के नाम पर कितनी सख्त है।
प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली एजेंसी लोकायुक्त को अदालत में केस प्रस्तुत करने के लिए जरूरी अभियोजन की अनुमति विभागों में अटकी हुई है। गौरतलब है कि 2014 में 30 मामलों में से सिर्फ छह प्रकरणों में विधि विभाग द्वारा अनुमति दी गई है। बाकी 24 प्रकरणों में संबंधित अधिकारियों के प्रशासकीय विभागों से अभिमत ही प्राप्त नहीं हुआ है, इसलिए मामले लंबित हैं।
लोकायुक्त पुलिस ने पिछले पांच साल में 180 भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए 368 करोड़ की आय से अधिक की संपत्ति जब्त की है। पिछले दो साल में लोकायुक्त पुलिस ने 91 अफसरों के खिलाफ एफआईआर की है। पिछले पांच साल में लंबी छानबीन के बाद लोकायुक्त पुलिस ने भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की है। कार्रवाई के दौरान अफसरों की 368 करोड़ की आय से अधिक संपत्ति के दस्तावेज और नगदी बरामद की है। यह संपत्ति अफसरों ने अपने परिजनों और परिचितों के नाम भी खरीदी थी।
लोकायुक्त पुलिस ने पिछले पांच साल में रिश्वत लेने, पद का दुरुपयोग करने और आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के 1775 मामले दर्ज किए थे। इनमें से 945 आरोपियों के खिलाफ अदालत में चालान पेश हो सका। शेष आरोपियों की अभियोजन स्वीकृति शासन स्तर पर लंबित होने के कारण चालान पेश नहीं हो सके हैं।

मोदी को मर्ज का पता नहीं, बढ़ा रहे हैं दवाओं का डोज

भ्रष्टाचार को गंभीर अपराध की श्रेणी में लाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून में आधिकारिक संशोधनों को मंजूरी दी, जिसमें भ्रष्टाचार के लिए सजा की अवधि पांच साल से बढ़ाकर सात साल करने का प्रावधान है। भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 में प्रस्तावित संशोधनों में घूसखोरी के अपराध में रिश्वत देने और रिश्वत लेने वाले-दोनों के लिए अधिक कड़ी सजा का प्रावधान है। एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, ‘सजा के प्रावधानों को न्यूनतम छह माह की बजाय तीन साल और अधिकतम पांच साल की बजाय सात साल (सात साल की सजा होने पर भ्रष्टाचार गंभीर अपराधों की श्रेणी में आ जाएगा) तक बढ़ाया जा रहा है। भ्रष्टाचार के मामलों के जल्द निपटारे के लिए दो वर्ष की समय-सीमा निर्धारित करने का भी प्रावधान है। विज्ञप्ति के अनुसार, ‘पिछले चार वर्ष में भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों से जुड़े मामलों के निपटारे में औसतन आठ वर्ष से अधिक समय लगा। दो साल के भीतर मुकदमा खत्म करके इस तरह के मामलों को जल्द निपटाने का प्रस्ताव किया गया है। इसके अनुसार किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा आधिकारिक कामकाज अथवा दायित्वों के निर्वहन में की गई सिफारिशों अथवा किए गए फैसलों से जुड़े अपराधों की जांच के लिए, जैसा भी अपराध हो उसके अनुरूप लोकपाल अथवा लोकायुक्त से जांच- पड़ताल के लिए पूर्व मंजूरी लेना जरूरी होगा। कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए संशोधन भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2013 का हिस्सा होंगे, जो राज्यसभा में लंबित है। यह वाणिज्यिक संगठनों को उनसे जुड़े लोगों को सरकारी कर्मचारी को घूस न देने के दिशा-निर्देश भी प्रदान करेंगे।

किए कुछ बड़े बदलाव

भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 में तैयार किया गया था, लेकिन बाद में सरकार ने इसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाने के लिए इसमें कुछ संशोधनों का प्रावधान किया और भ्रष्टाचार निरोधक (संशोधन) विधेयक 2013 को 19 अगस्त 2013 को राज्यसभा में पेश किया गया। विभाग से संबद्ध संसदीय स्थायी समिति ने पिछले साल 6 फरवरी को राज्यसभा में इस विधेयक से संबंधित अपनी रिपोर्ट सौंप दी, लेकिन विधेयक पारित नहीं हो पाया। विज्ञप्ति के अनुसार, ‘विधेयक में घूसखोरी से जुड़े अपराधों को परिभाषित करने में कुछ बड़े बदलाव किए गए हैं।

उच्च अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति का इंतजार

प्रदेश के कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार की मंजूरी की बांट जोह रहे हैं। इसमें मुख्यत: हरिरंजन राव, अनुराग जैन, पूर्व प्रबंध निदेशक एमपीएसईडीसी अनुराग श्रीवास्तव के अलावा शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एसआर मोहंती के मामले में तो सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जांच कराए जाने के बाद भी दोषी पाए जाने पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार से अभियोजन स्वीकृति की राह देख रहे हैं। उल्लेखनीय है कि मोहंती द्वारा 719 करोड़ का कर्ज नियम विरुद्ध बांटने पर मोहंती के खिलाफ जांच 2004 में शुरू की गई थी। मोहंती ने इस मामले में ईओडब्ल्यू की कार्रवाई को गलत ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने ईओडब्ल्यू को नए सिरे से जांच करने के निर्देश दिए। ईओडब्ल्यू ने दोबारा मामले की जांच कर मोहंती को दोषी ठहराते हुए न्यायालय में चालान पेश करने के लिए एक बार फिर अभियोजन स्वीकृति जारी करने की मांग की है।

One thought on “भ्रष्ट अधिकारी पर मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं देती हैं सरकारें”
  1. Can I just say what a comfort to uncover someone that genuinely knows what
    they’re discussing on the web. You certainly know how to bring an issue to light and make it important.
    A lot more people need to check this out and understand this side of the story.
    I was surprised that you aren’t more popular since you most certainly
    possess the gift.

Leave a Reply to Eleanor Ostermann Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *