इंदौर शहर में मात्र पिछले दो दिन में सभी थाना क्षेत्रों में 35 बाइक और कार चोरी की एफआईआर दर्ज की गई है!?

चोरी के संगठित अपराध के धंधे का पूरे भारत में सालाना टर्न ओवर 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है!

हर पुलिस थाने की बंदी हैं क्षेत्र के कबाड़ी और ऑटो मोबाइल डिस्पोजल के व्यापारियों के यहां पर!

कबाड़ी, मैकेनिक, ऑटो मोबाइल डिस्पोजल के व्यापारी से लेकर आरटीओ एजेंट, आरटीओ के बाबू और सभी पुलिस थाने है। इस संगठित अपराध की अरबों-खरबों की कमाई के हिस्सेदार!?

इंदौर। इंदौर शहर में मात्र पिछले दो दिन में सभी थाना क्षेत्रों में 35 बाइक और कार चोरी की एफआईआर दर्ज की गई है!? यदि इन दो दिनों के मान से औसत निकाले तो तकरीबन 500 से 600 चोरी की वारदातें हर महीने सिर्फ इंदौर शहर में होती हैं! कोई भी थाना क्षेत्र अछूता नहीं है, जहां पर कम से कम बाइक और कार चोरी की रिपोर्ट रोज न दर्ज होती हो! आज कल 80 फीसदी चोरियां बाइक और कारों की हो रही है! चूंकि उनको चुराना सबसे सरल काम है! बाइक और कार चोरों के इस संगठित अपराध का इंदौर में पिछले 2 दिनों के हिसाब से औसत देखे तो तकरीबन 5 से 6 हजार बाइक और कारे इंदौर में चोरी होती है! जिसकी औसत कीमत कार और बाइक की यदि 50 हजार मान ले तो तकरीबन 25 से 30 करोड़ रुपए का सालाना टर्न ओवर सिर्फ बाइक और कार चोरी का ही है!
बाइक, कार, ट्रक चोरी का ये सदाबहार धंधा एक संगठित अपराध की तरह संचालित किया जाता है! इस संगठित धंधे में कम उम्र के किशोरों से लेकर पढ़े लिखे युवा तक शामिल हैं, जिनका काम होता है घात लगाकर बड़े सुनियोजित तरीके से शिकार पर किसी बगुले के माफिक नजर रखना! और सही मौका मिलते ही बाइक और कार को वहा से चुरा ले ना! इस काम के उन्हें कार और बाइक 5000 से लेकर 1 लाख रुपए तक दिए जाते हैं! इस संगठित अपराध में मैकेनिक, कबाड़ी वाले, ऑटो मोबाइल डीस्पोजल वाले, आरटीओ एजेंट, आरटीओ के बाबू सब मिल कर एक संगठित अपराध की तरह चला रहे हैं! इन संगठित गिरोहों के जाल और तार न सिर्फ पूरे प्रदेश में वरन अन्य राज्यों तक फैले हुए हैं! यदि पूरे भारत में बाइक, कार, ट्रक और बसों की चोरियों के इस संगठित अपराध के आर्थिक पहलू के सालाना टर्नओवर का आकलन करे तो यह तकरीबन 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा होगा!?
हर शहर में कुछ प्रशिक्षित गैंगों द्वारा इन चोरियों को अंजाम दिया जाता है और फिर या तो लोकल ऑटो मोबाइल डिस्पोजल के व्यापारियों, या ट्रक बस बॉडी बिल्डिंग के नाम से पुराने ट्रक को तोडऩे वालों के जरिए जिनके पास बाकायदा प्रशिक्षित मैकेनिक होते हैं को बेच दिया जाता है! फिर ये कबाड़ी वाले और आटोमोबाइल डिस्पोजल के व्यापारी इन्हें अलग अलग पुर्जों में बदल कर मैकेनिक को बेच देते हैं! चूंकि पुलिस बाइक, कार, ट्रक, बस चोरी की एफआईआर सिर्फ खानापूर्ति के लिए लिखती हैं तथा पीडि़त भी इंश्योरेंस से पैसा लेने के लिए रिपोर्ट लिखाता है! इसके अलावा उसे कोई मतलब नहीं है! इंश्योरेंस और फ़ाइनेंस के पैसे हड़पने के लिए भी ट्रक, बस और कार वाले कई बार झूठी रिपोर्ट लिखाते हैं!? रही बात पुलिस की तो किसी भी साधारण चोर को पकड़ कर उस पर 50 से 100 तक एफआईआर के इल्जाम लगाकर न्यायालय में पेश करती है और जहा वो कानूनी दांव पेंच से बड़े आराम से बरी हो जाते है!? और पुलिस को असली अपराधी सरगनाओं कबाड़ी वालों और ऑटो मोबाइल डिस्पोजल के व्यापारियों से बंदी के तौर पर लाखों रुपए का नजराना मिल जाता है!

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