मात्र 6500 रुपए में 3000 हजार करोड़ रुपए की मोर्या हिल्स की 133.30 एकड़ जमीन फर्जी और कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर एक सोची-समझी साजिश के तहत अपने नाम करवाई थी झंवर बंधुओं और मुछाल ने !

5 हिन्दू और 5 मुस्लिम नाबालिग और कम उम्र के चरवाहे और मजदूरो के हस्ताक्षर से 133.30 एकड़ जमीन को फर्जी तरीके से खरीदना और बेचना बताया गया !?

@प्रदीप मिश्रा री-डिस्कवर इण्डिया न्यूज

इंदौर। इंदौर के बंगाली चौराहे से बाईपास की तरफ कनाडिय़ा रोड के दोनों तरफ फ़ैली मोर्या हिल्स, मोर्या गार्डन जो ग्राम खजराना तहसील और जिला इंदौर पटवारी हल्का नंबर 30 में स्थित खसरा नंबर 1429/1, रकबा 133.30 एकड़ कृषि भूमि के अंतर्गत आती है! वस्तुत: उपरोक्त 133.30 एकड़ बेशकीमती जमीन तत्कालीन खजराना जागीरदार श्रीमंत राजकन्या सावित्रीबाई बन्सुड़े के स्वामित्व और अधिपत्य की थी! जिसे तत्कालीन झंवर बंधुओ विमल पिता सीताराम झंवर, जयनारायण झंवर और गोवर्धनदास मुछाल ने जागीरदार श्रीमंत राजकन्या सावित्रीबाई बन्सुड़े के नौकर कृष्णकांत पिता आत्मारामसिंह ठाकुर के साथ षड्यंत्र कर धोखाधड़ी और कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर अपने नाम से रजिस्ट्री कराकर 30 मई 1962 को अपनी ही बी. जे. कंपनी पता 9 महारानी रोड, इंदौर जिसमें वो डायरेक्टर थे को रजिस्ट्री कर बेच दी! लेकिन जिला राजस्व इंदौर में जमीन का नामांतरण नहीं करवाया, क्योंकि उस समय जमीन की असल मालिकान श्रीमंत राजकन्या सावित्रीबाई बन्सुड़े जिन्दा थी! 7 साल बाद दिनांक 13/11/1968 को जब श्रीमंत राजकन्या सावित्रीबाई बन्सुड़े का स्वर्गवास हो गया, तब जाकर बी.जे. कंपनी के तत्कालीन मालिकों ने 1 साल बाद दिनांक 4/11/1969 को जमीन का नामान्तरण कंपनी के नाम करवाया! और सबसे खास बात यह है की सूचना के अधिकार कानून के तहत मांगी जानकारी के अनुसार बी.जे. कंपनी के नाम हुए इस नामान्तरण का कोई रिकॉर्ड जिला राजस्व विभाग इंदौर के पास नहीं है!?

कैसे कृष्णकांत उर्फ़ बाबा साहेब ने षड्यंत्र कर फर्जी तरीके से 133.30 एकड़ जमीन बी.जे. कंपनी के नाम की !

कृष्णकांत उर्फ़ बाबा साहेब जिसके पिता आत्माराम सिंह ठाकुर श्रीमंत राजकन्या सावित्रीबाई बन्सुड़े के विश्वास पात्र नौकर थे। वहीं कृष्णकांत शराबी और अपराधिक प्रवृति का व्यक्ति था! 20/12/1958 को कृष्णकांत ने स्वयं को श्रीमंत राजकन्या सावित्रीबाई बन्सुड़े का बिना किसी लिखित एवं रजिस्टर्ड आम मुख्त्यार के सिर्फ मौखिक रूप से बताकर ग्राम खजराना का खसरा नंबर 1429/1 कुल रकबा 133.30 एकड़ एकमुश्त मात्र 1000 रुपए में कुल 10 लोगों को जिसमें 5 हिन्दू और 5 मुस्लिम उसमे से भी कुछ नाबालिग या कम उम्र के निवासी सभी ग्राम खजराना को एक ही पंजीकृत रजिस्टर्ड विक्रय पत्र संख्या 1/1695/58 के माध्यम से बेच दी! क्या यह संभव है!? किसने कितनी जमीन खरीदी इसका कोई उल्लेख नहीं है! किसने कितने-कितने पैसे दिए इसका भी कोई उल्लेख नहीं है !
4 साल बाद यानि दिनांक 30/5/1962 को उपरोक्त सभी 10 लोगों ने बिना बतांकन, बिना नामांतरण के तीन अलग-अलग रजिस्ट्री, के माध्यम से 133.30 एकड़ जमीन का स्वमेव बंटाकन बताकर 1429/1/1-44 एकड़ 2150 रुपए,1429/1/2- 44 एकड़ 2150 रुपए और 1429/1/3-45.30 एकड़ 2200 रुपए इस तरह कुल 6500 रुपए में एक ही दिन में बेचना बताया! ये चारों रजिस्ट्री को भौतिक रूप से देखकर कोई भी जांचकर्ता अधिकारी स्वयं कह सकता है की यह सब फर्जी, कूटरचित और साजिश के तहत किया गया अपराधिक कृत्य है! और सबसे खास बात यह है की उपरोक्त 10 लोगों में से 1 जिन्दा है! जब ‘री-डिस्कवर इण्डियाÓ के संवाददाता ने उनसे बात की तो उन्होंने कहा की न तो हम 10 लोगों ने मिलकर कभी कोई जमीन खरीदी और न ही बेची! क्रमश:…..

@प्रदीप मिश्रा री-डिस्कवर इण्डिया न्यूज, इंदौर

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