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झोलाछाप व अनुभवहीन डॉक्टर कर रहे हैं मरीजों का शोषण…

नई दिल्ली। पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने  कहा था कि सबको अच्छे स्वास्थ्य का अधिकार है, सेहत से खिलवाड़ सही नहीं है। उन्होंने संज्ञान लेते हुए मामले को सदन में उठाया था और कहा था  कि डॉक्टरों का लैब से गठजोड़ शर्मनाक है।  यह गोरखधंधा गैरकानूनी है। सरकार इस मामले में गंभीर है और कमीशनखोरी में शामिल लोगों पर कार्रवाई होगी और उनके लाइसेंस भी रद्द हो सकते हैं। ऐसे डॉक्टरों को मेडिकल फील्ड से बाहर निकालकर फेंक देना चाहिए, जो इस नोबल प्रोफेशन पर कलंक हैं। इस अनैतिक कार्य में कुछ लोग ही लिप्त हैं। इसके लिए पूरे मेडिकल प्रोफेशन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। मरीजों और मेडिकल इकॉनोमी को इस तरह के अनैतिक कामों से बचाने की जरूरत है। साथ ही कमीशनखोरी में लिप्त ऐसे लोगों के खिलाफ एक ठोस कानून की जरूरत है, लेकिन कानून तो बने नहीं, वरन् मंत्रीजी जरूर बदल गए।

पैथालॉजी सेन्टरों की रिपोर्ट में अंतर

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पिछले महीने देशभर की पैथोलॉजी सेंटरों को अवैध बताने का आरोप लगाने वाली याचिका को हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया। दायर याचिका में कहा गया है कि पैथालॉजी सेन्टर में उपयोग किए जाने वाले केमिकल, किट, पदार्थ व रिएजेन्ट के लिए कोई मानक निर्धारित नहीं है, जिससे पैथालॉजी सेन्टर की रिपोर्ट एक जैसी नहीं आती है। चीफ जस्टिस एएम खानविलकर व जस्टिस सीवी सिरपुरकर की युगलपीठ ने अनावेदकों को नोटिस जारी कर जबाव मांगा है। यह मामला अधिवक्ता अभिताभ गुप्ता की ओर से दायर किया गया है, जिसमें कहा गया है कि लैब में उपयोग होने वाले उपकरण को मान्यता एनएबीएल के द्वारा दी गई है। एनएबीएल ने मात्र देश में 163 लैब को मान्यता दी है, जिसमें से एक भी पैथालॉजी सेन्टर नहीं है। इसके अलावा पैथालॉजी सेन्टर में उपयोग होने वाले केमिकल, रिएजेन्ट, किट व पदार्थ के लिए कोई मानक निर्धारित नहीं है, जिसके कारण पैथालॉजी सेन्टर की रिपोर्ट अलग-अलग आती है। नियमानुसार इंडियन फार्मेसी कमीशन को पैथालॉजी सेन्टर में उपयोग होने वाले केमिकल सहित अन्य पदार्थों का मानक निर्धारित करना चाहिए। पैथालॉजी में उपयोग होने वाली ड्रग भी ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट के अंतर्गत आती है। याचिका में मांग की गई थी कि पैथालॉजी सेन्टर में उपयोग होने वाली ड्रग का मानक स्तर निर्धारित किया जाए तथा अवैध रूप से संचालित पैथालॉजी सेन्टर को बंद किया जाए। याचिका की सुनवाई करते हुए युगलपीठ ने केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग, महानिदेशक स्वास्थ्य सेवा, चेयर इंडियन फार्मेसीकोपियन कमीशन, सेन्ट्रल ड्रग स्टैंडर्ड आर्गेनाइजेशन, ड्रग टेक्निकल एडवाईजरी बोर्ड, कंट्रोलर फूड एंड ड्रग सप्लाई, प्रदेश के गृह सचिव व एनएबीएल को नोटिस जारी किया हैं।

देश की जनता के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह सरकारें

गौरतलब है कि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में किया जाने वाला खर्च देश के कुल जीडीपी का मात्र 1 प्रतिशत है और यह दुनिया में सबसे कम है।  स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च का वैश्विक औसत 5.4 प्रतिशत है। भारत में इलाज पर होने वाले खर्च का 80 प्रतिशत स्वयं लोगों द्वारा किया जाता है। वहीं, विकसित देशों में ठीक इसका उल्टा यानी 80 प्रतिशत वहां की सरकार द्वारा किया जाता है। इस वजह से भारत में मेडिकल सेवा का कारोबार 15 से 20 प्रतिशत की तेज गति से आगे बढ़ रहा है। आज भारत में मेडिकल सेवाओं का कारोबार तकरीबन 150 अरब डॉलर का है। देश की 125 करोड़ की जनता के स्वास्थ्य व उसके इलाज के प्रति सरकारें  पूर्णतया लापरवाह और गैर जिम्मेदार हैं। दवाओं की कीमतों के निर्धारण की कोई नीति नहीं है। मानकीकरण का अभाव और मानक क्लिनिकल प्रोटोकॉल का न होना सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की कमी, डॉक्टरों की कमी, सरकारी अस्पतालों व क्लीनिको की बदहाल स्थिति, साफ-सफाई यहां तक कि साफ पीने के पानी तक का पता नहीं है। सरकार द्वारा बजट में लोगों के स्वास्थ्य के लिए न्यूनतम बजट आवंटित करना यह दर्शाता है कि सरकार लोगों को स्वस्थ बनाने और इलाज के लिए पूर्णतया निजी व प्राइवेट संस्थानों के हवाले कर रही है। भारत में प्रति 1000 लोगों पर 0.7 डॉक्टर, 1.5 नर्स व 1.3 बेड्स का अनुपात है। इसकी तुलना में वैश्विक औसत 2.5 डॉक्टर व नर्स एवं 3.5 बेड्स प्रति 1000 लोगों का है। इससे साफ हो जाता है कि देश में हेल्थकेयर सेक्टर में पर्याप्त स्किलयुक्त कर्मचारियों की भारी कमी है व यह परिस्थिति हेल्थकेयर सर्विस प्रोवाइडर्स के लिए भविष्य में एक बड़ी कारोबारी संभावना हो सकती है। हेल्थकेयर सेवाओं की तेजी से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भारत को 26 लाख बेड्स, 15.4 लाख डॉक्टरों की जरूरत है  और सबसे बड़ी बात यह है कि नाटो देश की जनता, न ही जनप्रतिनिधि और न ही प्रशासन इसके लिए जागरूक है। इसके लिए न कोई जन आन्दोलन किया जा रहा है, न कोई आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है, सिर्फ और सिर्फ सिर झुकाकर इलाज के नाम पर अपना शोषण करवाने के लिए लोग मजबूर हैं। हालात बद से बदतर स्थिति की तरफ बहुत तेजी से बढ़ चुके हैं। तमाम तरह की बीमारियों के चलते लोगों की थोकबंद मौतें हो रही है। हाल ही में पहले स्वाइन फ्लू के प्रकोप से लोगों ने जान गंवाई। अब हैजा, आंत्रशोथ, मधुमेह, हार्ट अटैक, कैंसर, लीवर, किडनी आदि की बीमारियों से लोग अपनी जान गवा रहे हैं।

भारत बड़ा दवा निर्यातक, फिर भी दवा के अभाव में हो रही मौतें

खास ध्यान देने वाली बात यह है भारत दुनिया के बड़े दवा निर्यातकों के रूप में विश्व के देशों में शुमार है, लेकिन खुद इस देश के लोग दवाइयों के अभाव में दम तोड़ते जा रहे हैं, लेकिन सरकारों की नीद नहीं खुल रही है और इसका सबसे बड़ा कारण है, स्वास्थ्य व अपने अधिकारों के प्रति लापरवाह जनता, जो नेताओं व राजनैतिक सत्ता के सामने आज भी नपुंसक है।

भारतीय डायग्नोस्टिक अनियंत्रित व असंगठित

भारतीय डायग्नोस्टिक इंडस्ट्री मोटे तौर पर अनियंत्रित व असंगठित है। इस सेक्टर का आकार  2015 तक बढ़कर 25400 करोड़ रुपए हो जाने की संभावना है। इसमें से पैथोलॉजी व इमेजिंग एवं रेडियोलॉजी सेगमेंट क्रमश: 18000 करोड़ व 7400 करोड़ रुपए के आकार वाले हो जाएंगे। एक अनुमान के मुताबिक किसी भी बीमारी के इलाज की प्रक्रिया को तय करने में डायग्नोस्टिक टेस्ट के परिणामों की 60-70 प्रतिशत भागीदारी होती है। एक तो बीमार और उस पर बीमारी का पता करने के लिए होने वाली जांच के खर्चे का बोझ। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि डॉक्टर की सलाह पर आप जो पैथोलॉजिकल जांच करवाते हैं, उन पर लैब संचालक वास्तविक खर्च से सैकड़ो गुना रुपए वसूलते हैं। अगर आप मलेरिया की जांच या ईसीजी करवाते हैं, तो जांच खर्च आता है महज ५ रुपए, लेकिन लैब संचालक की जांच फीस है 50 से 150 रुपए तक। वहीं, सोनोग्राफी का खर्च आता है ३० रुपए, लेकिन जांच फीस है 600 रुपए और इसकी मुख्य वजह जांच फीस की करीब आधी रकम संबंधित डॉक्टर की जेब में जाती है। लैब संचालकों का कहना है डॉक्टर अगर कमीशन लेना बंद कर दें तो वे जांच फीस आधी कर देंगे। डॉक्टर या तो अपनी पर्ची पर लैब का नाम लिखते हैं या मौखिक रूप से मरीज को बताते हैं कि आपको फलां लैब से जांच करवाना है। मरीज अगर डॉक्टर बदलता है तो अगला डॉक्टर भी अपनी मनपसंद लैब में जांच लिखता है। इससे जहां लैब संचालकों की कमाई होती है, वहीं डॉक्टर को कमीशन मिलता है।

गलत रिपोर्ट देकर भी कर रहे कमाई

जांच रिपोर्ट गलत बनवाकर भी कमाई का खेल खेला जा रहा है। चूंकि मरीज शिकायत नहीं करते हैं, इसलिए लैब पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। इन दिनों कुकुरमुत्ते की तरह झोलाछाप व कम अनुभवी डॉक्टर जगह-जगह देखे जा सकते हैं व अनेक स्थानों पर पैथोलॉजी खुल गई हैं, जहां मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ के साथ धडल्ले से आर्थिक दोहन भी हो रहा है। ऐसे अवैध पैथोलॉजी संचालक गरीबों को लूटकर पूंजी बना रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि अवैध पैथोलॉजी को बढ़ावा देने में एमबीबीएस एवं झोलाछाप चिकित्सकों का हाथ है। इसका मूल कारण कमीशनखोरी है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के नियमानुसार केवल एमडी पैथोलॉजिस्ट या डीसीपी डिप्लोमा इन क्लिनिक पैथोलॉजी डिग्रीधारक ही कोई पैथ लैब खोल सकते हैं। साथ ही पैथ लैब के कर्मचारियों के लिए आवश्यक योग्यता रखना अनिवार्य है, लेकिन अधिकतर पैथोलॉजी जाली प्रमाण-पत्र के सहारे चलाई जा रही हैं। कई पेथोलॉजिस्ट डीएमएलटी में डिप्लोमा कर पैथ लैब खोलकर कार्य में लीन रहते हैं, जबकि इसका कार्य सहयोगी के रूप में होना चाहिए। कई पैथ लैब में एमडी पैथोलॉजिस्ट की जगह एमबीबीएस रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करते हैं। ऐसे लैब में टेक्नीशियन का काम करने वाले कई लोग 10वीं कक्षा भी पास नहीं होते है। गौरतलब है कि किसी पैथोलॉजिस्ट के लिए एक दिन में 20 से अधिक स्लाइड देख पाना संभव नहीं है, लेकिन ऐसे पैथोलॉजी के साधारण कर्मचारी 100 से अधिक स्लाइड देख लेते हैं। अब ऐसे में जांच रिपोर्ट की सच्चाई का अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।

10वीं-11वीं पास हैं लैब टेक्निशियन

  • पैथोलॉजी में टेक्नीशियन के पद पर काम करने वालों का वेतन 1500 से 5 हजार रुपए तक है।
  • ये सभी विगत 10-15 वर्षों से अपनी सेवाएं लगातार पैथोलॉजी सेंटर को दे रहे हैं।
  • सरकारी डॉक्टर ही मरीजों को निजी पैथोलॉजी भेज रहे हैं। डॉक्टर दलाल बन गए हैं। इन्हें जांच में मिलता है 40 प्रतिशत कमीशन।

क्लीयरेंस सर्टिफिकेट जरूरी

लैब के संचालकों के पास लैब का क्लीयरेंस सर्टिफिकेट जरूर होना चाहिए। इस सर्टिफिकेट के तहत लैब में उपयोग होने वाली मशीनों का ऑडिट इंजीनियर द्वारा कराया जाता है। ऑडिट में इस बात का खुलासा होता है कि जांच मशीन सही जांच कर रही है कि नहीं, यदि वह सही या गड़बड़ जांच कर रही है तो उसका प्रतिशत क्या है, उसके बाद इंजीनियर उसका सर्टिफिकेट जारी करता है। मरीज को कौन सी बीमारी है, कौन सी बीमारी की संभावना है तथा मरीज को आगे कौन सी जांच कराना उचित होगा आदि बाते लिखी होना जरूरी है, लेकिन अवैध पैथालॉजी संचालक इन बातों का ध्यान नहीं रखते हैं।

बिचौलियों की अहम भूमिका

पैथोलॉजी चलाने में बिचौलियों की अहम भूमिका होती है। ऐसे बिचौलिए डॉक्टरों एवं पैथोलॉजी के बीच सेतु का काम करता है, जो डॉक्टरों को प्रलोभन देकर मरीजों को पैथोलॉजी में लाता है। जहां से मरीजों के शोषण व दोहन का खेल शुरू होता है।

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