बिना जांच के धोखाधड़ी के मुकदमे एवं महिला कर्मचारियों द्वारा सेक्सुअल हरासमेंट व छेड़छाड़ की शिकायतों पर

क्या वर्षों से प्रतिष्ठित रीयल एस्टेट, कॉलोनाइजर्स सराफा व्यवसायी या कंपनियों के खिलाफ पुलिस एफआईआर दर्ज करना जायज है

इंदौर। प्रतिष्ठित रीयल एस्टेट, कॉलोनाइजर्स, सराफा व्यवसायी या अन्य ऐसी कंपनियां या प्रतिष्ठान जो पिछले कई वर्षों या दशकों से बाज़ार में पूर्ण रूप से प्रशासनिक और कानूनी रूप से सभी मान्यता, आज्ञा और कागजात लेकर काम या व्यापार कर रहे है। करोड़ों रुपए का स्थाई इन्वेस्टमेंट किया है,संपत्ति है, सैकड़ों लोगों को नौकरी दे रखी है, लाखों, करोड़ों रुपए का सरकार को टैक्स चुकाते हैं ।
वर्षों या दशकों से पूरे परिवार बेटा, बेटी, पत्नी, माता-पिता, रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ शहर के स्थाई निवासी है। कई सालों और यहां तक दशकों से बाज़ार में ग्राहकों के साथ लेन-देन करते आ रहे हैं के खिलाफ मिली किसी भी शिकायत पर सीधे अपराधिक प्रकरण एफआईआर दर्ज कर उसके खिलाफ न्यायालय में मुकदमा दर्ज करवाकर लम्बी,कठोर,जटिल और अपमानजनक कानूनी प्रक्रिया से गुजारकर न्यायालय से निर्दोष होने तक की नारकीय व्यवस्था में डालना उचित है।
रीयल एस्टेट, कॉलोनाइजर्स, सराफा व्यवसायी या अन्य ऐसी कंपनियां के व्यवसाय में कई बार ग्राहक व्यापारी या संस्थान को अग्रिम भुगतान करता है या उसके प्रोजेक्ट में धन निवेश करता है, उसके बदले व्यापारी द्वारा उसे तय समय में या तो तैयार किये गए उत्पाद को देना होता है या निवेश से संबंधित जो वादा किया गया है वह वादा निभाना होता है। चूँकि ये बड़े प्रोजेक्ट होते है, करोड़ों, अरबों का इन्वेस्टमेंट रहता है, केंद्र सरकार, राज्य सरकार और लोकल नगरीय या ग्रामीण सरकारों की नीतियां, नियम व कानूनों के अलावा सरकारी लाल फीताशाही, भ्रष्टाचार, राजनैतिक दवाब की वजह से भी प्रोजेक्ट तय शुदा समय में पूरा नहीं हो पाते है।
इसके अलावा बाज़ार में मंदी सभी ग्राहकों से समय पर पूरा पैसा न आ पाना, बाज़ार में उतार-चढ़ाव व फाइनेंसरों और प्रमोटरों द्वारा सही समय पर धन की उपलब्धता न करवाना या धोखा देने की वजह से भी कुछ समय के लिए समस्याएं पैदा कर देती है। कई बार कंपनी या संस्थान में पार्टनरों, डायरेक्टरों या संस्थान में काम करने वाले कर्मचारियों द्वारा धोखा किया जाता है उसकी वजह से भी संस्थान या कंपनी को नुकसान उठाना पड़ता है।
ऐसे स्थिति में जहा एक तरफ मालिक इन समस्याओं के हल के लिए संघर्ष कर रहा होता है, वही दूसरी तरफ ग्राहक संस्थान पर अपना विश्वास खोने लगता है। चूंकि व्यापारी बाज़ार में अपनी और संस्थान की साख न खऱाब हो जाय इस डर से ग्राहक को सच नही बताकर टालता रहता है? ऐसी दशा में ग्राहक उस पर से पूरा विश्वास खो देता है । अब ऐसी स्तिथि में ग्राहक या तो पुलिस थाने या न्यायालय में अपने सभी कागजातों, रसीदों के साथ या तो अपने पैसे या उत्पाद को वापस दिलाने की गुहार करता है और फिर चलता है पुलिस और कानून का दमन और विनाश कारी खेल।
कानून से प्राप्त अधिकारों के तहत पुलिस सीधे धारा 406,420,506,34 के तहत धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज करती है, जिसमें संस्थान या कंपनी के सभी जिम्मेदार अपराधी बन जाते है! भले ही संस्थान या व्यापारी की नीयत और कृत्य में बेईमानी से उत्प्रेरित कर किसी की सम्पति या रकम को हड़पने का कोई काम न किया गया हो और न ही किसी को जान से मारने या धमकाने का कृत्य किया हो! इसी प्रकार महिला कर्मचारियों द्वारा भी सेक्सुअल हरासमेंट के झूठे मुक़दमे बड़े लोगों के खिलाफ दर्ज किये जा रहे है। इस तरह सिर्फ कानून और मुक़दमें की वजह से न सिर्फ एक संस्थान की असमय मौत हो जाती है वरन उसका मालिक और उसका परिवार बर्बादी की कग्गार पर आकर खड़ा हो जाता है !

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