कैलाश विजयवर्गीय सुप्रीम कोर्ट के पुराने न्याय दृष्टांतो और न्यायिक प्रक्रिया मे उलझे!
@प्रदीप मिश्रा री डिसकवर इंडिया न्यू्ज इंदौर
देश की कानून व्यवस्था में कोई आम आदमी हो या खास, उसने कोई अपराध किया है कि नहीं यह महत्वपूर्ण नहीं है! महत्वपूर्ण यह है कि कानूनी प्रक्रिया का सही तरीके से पालन हुआ है कि नहीं और उससे भी बड़ी बात की सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय समय पर दिए गए निर्णयों में प्रतिपादित न्यायिक फैसलों और गाइड लाइन का पालन निचली कोर्टों ने किया कि नही! मजिस्ट्रेट कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बस यही देखना न्यायालय में बैठे जजो का काम है!
आप ने अपराध किया है कि नहीं यह मुकदमा (trial) खत्म होने के बाद मालुम पडेगा उसमे मजिस्ट्रेट कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक 20 – 30 साल लगेंगे!
बिना किसी सबूत और गवाह के एक पश्चिम बंगाल की राज्य स्तरीय राजनैतिक महिला नेत्री ने शब्दों से लिखी और बया की गई बलात्कार की शिकायत, घटना के 2 साल बाद कर! कैलाश विजयवर्गीय को देश के कानूनी जाल और सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों के न्यायिक दृष्टांतो मे ऐसा उलझाया की, पिछले 3 सालो से कैलाश विजयवर्गीय जैसा कद्दावर, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और राष्ट्रभक्त नेता मैजिस्ट्रेट कोर्ट, हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक से गुहार लगा रहा है! कि मुझ पर जो आरोप लगाए गए हैं! वो झूठे, बेबुनियाद, मनगढ़ंत और मेरी छवि, मान-सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए लगाए गए हैं!
यहाँ सबसे खास बात यह है कि यह घटना पश्चिम बंगाल की है! उस समय कैलाश विजयवर्गीय पश्चिम बंगाल में भाजपा के प्रभारी थे! तब से लेकर आज तक पश्चिम बंगाल में भाजपा की धुर विरोधी तृणमूल कॉंग्रेस पार्टी सत्ता में है! और तेज तर्रार महिला ममता बनर्जी वहाँ की मुख्यमंत्री है! पुलिस और कोर्ट मे उनका शाशन चलता है!
उसके बावजूद वहां की मजिस्ट्रेट कोर्ट ने आदेश दिया था कि कोई अपराध नही बनता है! और 2 साल बाद राज्य स्तरीय महिला की घटना को लेकर विश्वसनीयता पर संदेह ज्ञापित किया! पश्चिम बंगाल की पुलिस ने भी कोई अपराध घटित होना नहीं पाया!
लेकिन दिनांक 4 मई को सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने बिना केस की मेरिट, सबूत, गवाह और तथ्यों पर जाय! वापस केस को मजिस्ट्रेट कोर्ट भेज दिया! अपने 64 पेज के फैसले मे घटना की सत्यता! आरोप लगाने वाली राजनीतिक महिला नेत्री की विश्वसनीयता! सबूत और गवाहों की कोई बात न करते हुए! सिर्फ और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों मे प्रतिपादित न्याय दृष्टान्त का पालन हुआ है कि नहीं! मजिस्ट्रेट की धारा 156(3) मे प्राप्त शिकायत पर कैसे आदेश देना है! पुलिस के शिकायत मिलने के बाद क्या कानूनी कर्तव्य है! से भर दिए गए हैं!
@प्रदीप मिश्रा री डिसकवर इंडिया न्यू्ज इंदौर

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