@री डिस्कवर इंडिया न्यूज इंदौर
ऐसे कायर कांग्रेसी और पूर्व मुख्यमंत्री को अब राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए? 
कायर राजनेता हमेशा धूर्त होता है, ना वो पार्टी कार्यकर्ताओ का विश्वास जीत सकता है और ना ही जनता का। 
यह न मुस्लिमों के साथ हैं और न ही हिंदुओं के साथ? हिंदू सभ्यता और संस्कृति इसके लिए कोई राजनैतिक मुद्दा न कभी था और न ही आज है? सिर्फ और सिर्फ राजनीति वो भी सहूलियत की करना इनका मुख्य पेशा हैं।
दिग्विजय सिंह इंदौर आए दो मुख्य मुद्दे थे। पहला एक विधायक के पुत्र द्वारा मुस्लिम युवकों को नौकरी से निकालने का असंवैधानिक और गैर कानूनी फरमान, जिसमें उनकी विधायक मां और पूरी भाजपा का मौन समर्थन प्राप्त है।
और दूसरा सरकार के कद्दावर मंत्री और दिग्विजय सिंह के खास दोस्त कैलाश विजयवर्गीय का भाई बहन के पवित्र स्नेह में दुलार का चुम्बन जैसे मां अपने बेटे को या बेटा अपनी मां को, पिता अपनी बेटी को या बेटी अपने पिता को देती हैं की तुलना विदेशी संस्कृति से करने का विवादास्पद बयान।
इन दोनों प्रमुख मुद्दों पर जिस तरह से दिग्विजय सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की वो राजनैतिक लिहाज से बेहद निराशजनक और एक कायर राजनेता की प्रेस कॉन्फ्रेंस थी। न उन्होंने किसी विधायक और मंत्री को कटघरे में खड़ा किया। और न ही दोनों मुद्दों के वजन को सही तरीके से मीडिया और जनता के सामने रख पाए।
न तो उनमें आक्रामकता है, न उनके शब्दों में धार है। और न ही वो विपक्ष के नाते जनता में कोई जोश या जागरूकता पैदा कर सकते है।
कद्दावर विपक्षी नेताओं को जो उनके दोस्त भी हैं कि बड़ी से बड़ी गलतियों पर सिर्फ “कड़ी निंदा करता हूं” का बयान दे सकते है उसमें “कड़ी” और “निंदा” शब्द की कोई व्याख्या नहीं होती है, जिससे पता चले की वो कड़ी निंदा किसे कहते है! वो भी तब जब मीडिया कोई सवाल पूछे तब?
सहूलियत के हिसाब से वो एक वर्ग विशेष के मुद्दे चुनते है, सिर्फ खुद की राजनैतिक दुकान के लिए। भारत के लोकतन्त्र में राजनीति शुरू से ही युद्ध का मैदान रही है, क्योंकि इस देश मे चुनाव मतलब इलेक्शन नहीं होता हैं यहां चुनाव (इलेक्शन) लड़ा जाता हैं। और जीत हमेशा योद्धा की होती हैं। और दिग्विजय सिंह कभी भी योद्धा नहीं रहे हैं।
@प्रदीप मिश्रा री डिस्कवर इंडिया न्यूज इंदौर

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