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मुनाफाखोरी ने कई तरह की परेशानियां पैदा कर दी हैं, उपभोक्ता फोरम का

  • शिकायत पत्र देने के 21 दिनों के भीतर जिला मंच विरोधी पक्ष को नोटिस जारी करेगा कि वह 30 दिनों में अपना पक्ष रखे। उसे 15 दिन अतिरिक्त दिए जा सकते हैं।
  • आयोग का आदेश न मानने पर दोषी को एक माह से लेकर तीन साल की कैद या 10 हजार रुपए तक का जुर्माना अथवा दोनों सजाएं हो सकती हैं।

सरकार कहती है- जब आप पूरी कीमत देते हैं तो कोई भी वस्तु वजन में कम न लें। बांट सही है या नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए कानून है। यह स्लोगन सरकारी दफ्तरों में देखने को मिल जाएगा। सरकार ने उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए कई कानून बनाए हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ताओं से पूरी कीमत वसूलने के बाद उन्हें सही वस्तुएं और वाजिब सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं।
बढ़ते बाजारवाद के दौर में उपभोक्ता संस्कृति तो देखने को मिल रही है, लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता की कमी है। आज हर व्यक्ति उपभोक्ता है, चाहे वह कोई वस्तु खरीद रहा हो या फिर किसी सेवा को प्राप्त कर रहा हो। दरअसल, मुनाफाखोरी ने उपभोक्ताओं के लिए कई तरह की परेशानियां पैदा कर दी हैं। वस्तुओं में मिलावट और निम्न गुणवत्ता की वजह से जहां उन्हें परेशानी होती है, वहीं सेवाओं में व्यवधान या पर्याप्त सेवा न मिलने से भी उन्हें दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हालांकि सरकार कहती है, जब आप पूरी कीमत देते हैं तो कोई भी वस्तु वजन में कम न लें। बांट सही है या नहीं, यह सुनिश्चित करने के लिए क़ानून है। यह स्लोगन सरकारी दफ्तरों में देखने को मिल जाएगा। सरकार ने उपभोक्ताओं को संरक्षण देने के लिए कई कानून बनाए हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद उपभोक्ताओं से पूरी कीमत वसूलने के बाद उन्हें सही वस्तुएं और वाजिब सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। भारत में 24 दिसंबर राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि उपभोक्ताओं को शोषण से बचाने के लिए 24 दिसंबर, 1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 लागू किया गया था। इसके अलावा 15 मार्च को देश में विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में इसकी शुरुआत 2000 से हुई।

 

Untitled-11गौरतलब है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-1986 में उत्पाद और सेवाएं शामिल हैं। उत्पाद वे होते हैं जिनका निर्माण या उत्पादन किया जाता है और जिन्हें थोक विक्रेताओं या खुदरा व्यापारियों द्वारा उपभोक्ताओं को बेचा जाता है। सेवाओं में परिवहन, टेलीफोन, बिजली, निर्माण, बैंकिंग, बीमा, चिकित्सा-उपचार आदि शामिल हैं। आमतौर पर ये सेवाएं पेशेवर लोगों द्वारा प्रदान की जाती हैं, जैसे चिकित्सक, इंजीनियर, वास्तुकार, वकील आदि। इस अधिनियम के कई उद्देश्य हैं, जिनमें उपभोक्ताओं के हितों और अधिकारों की सुरक्षा, उपभोक्ता संरक्षण परिषदों एवं उपभोक्ता विवाद निपटान अभिकरणों की स्थापना शामिल है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया कि उपभोक्ता कौन है और किन-किन सेवाओं को इस कानून के दायरे में लाया जा सकता है। इस अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक, किसी भी वस्तु को कीमत देकर प्राप्त करने वाला या निर्धारित राशि का भुगतान कर किसी प्रकार की सेवा प्राप्त करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता है। अगर उसे खरीदी गई वस्तु या सेवा में कोई कमी नजर आती है तो वह जिला उपभोक्ता फोरम की मदद ले सकता है। इस अधिनियम की धारा-2 (1) (डी) के अनुबंध (2) के मुताबिक, उपभोक्ता का आशय उस व्यक्ति से है, जो किन्हीं सेवाओं को शुल्क की एवज में प्राप्त करता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने 1997 के अपने एक फैसले में कहा कि इस परिभाषा में वे व्यक्ति भी शामिल हो सकते हैं, जो इन सेवाओं से लाभान्वित हो रहे हों।
यह कानून उपभोक्ताओं के लिए एक राहत बनकर आया है। 1986 से पहले उपभोक्ताओं को दीवानी अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते थे। इसमें समय के साथ-साथ धन भी ज्यादा खर्च होता था। इसके अलावा उपभोक्ताओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इस समस्या से निपटने और उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए संसद ने जिला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर विवाद पारितोष अभिकरणों की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया। यह जम्मू-कश्मीर के अलावा पूरे देश में लागू है। जम्मू-कश्मीर ने इस संबंध में अपना अलग कानून बना रखा है। इस अधिनियम के तहत तीन स्तरों पर अभिकरणों की स्थापना की गई है, जिला स्तर पर जिला मंच, राज्य स्तर पर राज्य आयोग और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग। अब उपभोक्ताओं को वकील नियुक्त करने की जरूरत नहीं है। उन्हें अदालत की फीस भी नहीं देनी पड़ती। इन अभिकरणों द्वारा उपभोक्ता का परिवाद निपटाने की सेवा पूरी तरह नि:शुल्क है। इन तीनों अभिकरणों को दो प्रकार के अधिकार हासिल हैं। पहला धन संबंधी अधिकार और दूसरा क्षेत्रीय अधिकार। जिला मंच में 20 लाख रुपए तक के वाद लाए जा सकते हैं। राज्य आयोग में 20 लाख से एक करोड़ रुपए तक के मामलों का निपटारा किया जा सकता है, जबकि राष्ट्रीय आयोग में एक करोड़ रुपए से ज्यादा के मामलों की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। यह धन संबंधी अधिकार है। जिस जिले में विरोधी पक्ष अपना कारोबार चलाता है या उसका ब्रांच ऑफिस है या वहां कार्य कर रहा है, तो वहां के मंच में शिकायती पत्र दिया जा सकता है। इसे क्षेत्रीय अधिकार कहते हैं। उपभोक्ता को वस्तु और सेवा के बारे में एक शिकायत देनी होती है, जो लिखित रूप में किसी भी अभिकरण में दी जा सकती है। मान लीजिए जि़ला मंच को शिकायत दी गई। शिकायत पत्र देने के 21 दिनों के भीतर जिला मंच विरोधी पक्ष को नोटिस जारी करेगा कि वह 30 दिनों में अपना पक्ष रखे। उसे 15 दिन अतिरिक्त दिए जा सकते हैं। जिला मंच वस्तु का नमूना प्रयोगशाला में भेजता है, इसकी फीस उपभोक्ता से ली जाती है। प्रयोगशाला 45 दिनों के अंदर अपनी रिपोर्ट भेजेगी। अगर रिपोर्ट में वस्तु की गुणवत्ता में कमी साबित हो गई तो जिला मंच विरोधी पक्ष को आदेश देगा कि वह माल की त्रुटि दूर करे, वस्तु को बदले या कीमत वापस करे या नुकसान की भरपाई करे, अनुचित व्यापार बंद करे और शिकायतकर्ता को पर्याप्त खर्च दे आदि। अगर शिकायतकर्ता जिला मंच के फैसले से खुश नहीं है तो वह अपील के लिए निर्धारित शर्तें पूरी करके राज्य आयोग और राज्य आयोग के फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय आयोग में अपील कर सकता है। इन तीनों ही अभिकरणों में दोनों पक्षों को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है। मंच या आयोग का आदेश न मानने पर दोषी को एक माह से लेकर तीन साल की कैद या 10 हजार रुपए तक का जुर्माना अथवा दोनों सजाएं हो सकती हैं।
कुछ ही बरसों में इस कानून ने उपभोक्ताओं की समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण किरदार निभाया। इसके जरिये लोगों को शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद करने का साधन मिल गया। इसमें 1989, 1993 और 2002 में संशोधन किए गए, जिन्हें 15 मार्च, 2003 को लागू किया गया। संशोधनों में राष्ट्रीय आयोग और राज्यों के आयोगों की पीठ का सृजन, सर्किट पीठ का आयोजन, शिकायतों की प्रविष्टि, सूचनाएं जारी करना, शिकायतों के निपटान के लिए समय सीमा का निर्धारण, भूमि राजस्व के लिए बकाया राशियों के समान प्रमाण पत्र मामलों के माध्यम से निपटान अभिकरण द्वारा मुआवजे की वसूली का आदेश दिया जाना, निपटान अभिकरण द्वारा अंतरिम आदेश जारी करने का प्रावधान, जिला स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापना, जिला स्तर पर निपटान अभिकरण के संदर्भ में दंडात्मक न्याय क्षेत्र में संशोधन और नकली सामान/निम्न स्तर की सेवाओं के समावेश को अनुचित व्यापार प्रथाओं के रूप में लेना आदि शामिल हैं। उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम-2002 के बाद राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग ने उपभोक्ता संरक्षण विनियम-2005 तैयार किया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ताओं को अधिकार दिया है कि वे अपने हक के लिए आवाज उठाएं। इसी कानून का नतीजा है कि अब उपभोक्ता जागरूक हो रहे हैं। इस कानून से पहले उपभोक्ता बड़ी कंपनियों के खिलाफ बोलने से गुरेज करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। मिसाल के तौर पर एक उपभोक्ता ने चंडीगढ से कुरुक्षेत्र फोन शिफ्ट न होने पर रिलायंस इंडिया मोबाइल लिमिटेड के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई और उसे इसमें कामयाबी मिली। इस लापरवाही के लिए उपभोक्ता अदालत ने रिलायंस पर 1.5 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया। इसी तरह एक उपभोक्ता ने रेलवे के एक कर्मचारी द्वारा उत्पीडि़त किए जाने पर भारतीय रेल के खिलाफ उपभोक्ता अदालत में मामला दर्ज करा दिया। नतीजतन, उपभोक्ता अदालत ने रेलवे पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया। बीते जून माह में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत ने ओडिसा के बेलपहाड़ के पशु आहार विक्रेता राजेश अग्रवाल पर एक लाख 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया। मामले के मुताबिक, ओडिसा के बेलपहाड़ के पशुपालक रामनरेश यादव ने अगस्त 2004 में राजेश की दुकान से पशु आहार खरीदा था। इसे खाने के कुछ घंटे बाद उसकी एक भैंस, एक गाय और दो बछडिय़ों ने दम तोड़ दिया। इसके अलावा बेलपहाड़ के जुल्फिकार अली भुट्टो की एक गाय की भी यह पशु आहार खाने से मौत हो गई। पीडि़तों द्वारा मामले की सूचना थाने में देने के बाद ब्रजराज नगर के पशु चिकित्सक लोचन जेना एवं बेलपहाड़ के पशु चिकित्सक प्रफुल्ल नायक ने भी पोस्टमार्टम के उपरांत इस बात की पुष्टि की कि पशुओं की मौत विषैला दाना खाने से हुई है। राम नरेश द्वारा क्षतिपूर्ति मांगने पर व्यवसायी ने कुछ भी देने से इनकार कर दिया। इस पर रामनरेश ने जिला उपभोक्ता अदालत की शरण ली और अदालत ने पशु आहार विक्रेता को दोषी करार दिया। इस फैसले के खिलाफ व्यापारी राजेश ने राज्य उपभोक्ता अदालत और बाद में 2007 में राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत में अपील दायर की। राष्ट्रीय अदालत के जज जेएम मल्लिक और सुरेश चंद्रा की खंडपीठ ने राज्य उपभोक्ता अदालत के फैसले को सही मानते हुए व्यापारी को एक लाख बीस हजार रुपए का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ने उपभोक्ता समूहों को प्रोत्साहित करने का काम किया है। इस कानून से पहले जहां देश में सिर्फ 60 उपभोक्ता समूह थे, वहीं अब उनकी तादाद हजारों में है। उन उपभोक्ता समूहों ने स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ताओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई है। सरकार ने उपभोक्ता समूहों को आर्थिक सहयोग मुहैया कराने के साथ-साथ अन्य कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं। टोल फ्री राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन उपभोक्ताओं के लिए वरदान बनी है। देशभर के उपभोक्ता टोल फ्री नंबर 1800-11-14000 डॉयल कर अपनी समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श ले सकते हैं। उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा शुरू की गई जागो, ग्राहक जागो जैसी मुहिम से भी आम लोगों को उनके अधिकारों के बारे में पता चला है।

उपभोक्ताओं की परेशानियां-

  • सेहत के लिए नुकसानदेह पदार्थ मिलाकर व्यापारियों द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट करना या कुछ ऐसे पदार्थ निकाल लेना, जिनके कम होने से पदार्थ की गुणवत्ता पर विपरीत असर पड़ता है, जैसे दूध से क्रीम निकालकर बेचना।
  • टेलीविजन और पत्र-पत्रिकाओं में गुमराह करने वाले विज्ञापनों के जरिये वस्तुओं तथा सेवाओं का ग्राहकों की मांग को प्रभावित करना।
  • वस्तुओं की पैकिंग पर दी गई जानकारी से अलग सामग्री पैकेट के भीतर रखना।
  • बिक्री के बाद सेवाओं को अनुचित रूप से देना।
  • दोषयुक्त वस्तुओं की आपूर्ति करना
  • कीमत में छुपे हुए तथ्य शामिल होना।
  • उत्पाद पर गलत या छुपी हुई दरें लिखना।
  • वस्तुओं के वजन और मापन में झूठे या निम्न स्तर के साधन इस्तेमाल करना।
  • थोक मात्रा में आपूर्ति करने पर वस्तुओं की गुणवत्ता में गिरावट आना।
  • अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) का गलत तौर पर निर्धारण करना।
  • एमआरपी से ज्यादा कीमत पर बेचना।
  • दवाओं आदि जैसे अनिवार्य उत्पादों की अनधिकृत बिक्री उनकी समापन तिथि के बाद करना।
  • कमजोर उपभोक्ता सेवाएं, जिसके कारण उपभोक्ता को परेशानी हो।
  • बिक्री और सेवाओं की शर्तों और निबंधनों का पालन न करना।
  • उत्पाद के बारे में झूठी या अधूरी जानकारी देना।
  • गारंटी या वारंटी आदि को पूरा न करना।

उपभोक्ताओं के अधिकार

  • जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक सामान और सेवाओं के विपणन के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार।
  • सामान अथवा सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, स्तर और मूल्य (जैसा भी मामला हो) के बारे में जानकारी का अधिकार, ताकि उपभोक्ताओं को अनुचित व्यापार पद्धतियों से बचाया जा सके।
  • जहां तक संभव हो उचित मूल्यों पर विभिन्न प्रकार के सामान तथा सेवाओं तक पहुंच का आश्वासन।
  • उपभोक्ताओं के हितों पर विचार करने के लिए बनाए गए विभिन्न मंचों पर प्रतिनिधित्व का अधिकार।
  • अनुचित व्यापार पद्धतियों या उपभोक्ताओं के शोषण के विरुद्ध निपटान का अधिकार।
  • सूचना संपन्न उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार।
  • अपने अधिकार के लिए आवाज उठाने का अधिकार।

माप-तौल के नियम

  • हर बांट पर निरीक्षक की मुहर होनी चाहिए।
  • एक साल की अवधि में मुहर का सत्यापन जरूरी है।
  • पत्थर, धातुओं आदि के टुकड़ों का बांट के तौर पर इस्तेमाल नहीं हो सकता।
  • फेरी वालों के अलावा किसी अन्य को तराज़ू हाथ में पकड़ कर तौलने की अनुमति नहीं है।
  • तराज़ू एक हुक या छड़ की सहायता से लटका होना चाहिए।
  • लकड़ी और गोल डंडी की तराज़ू का इस्तेमाल दंडनीय है।
  • कपड़े मापने के मीटर के दोनों सिरों पर मुहर होनी चाहिए।
  • तेल एवं दूध आदि के मापों के नीचे तल्ला लटका हुआ नहीं होना चाहिए।
  • मिठाई, गिरीदार वस्तुओं एवं मसालों आदि की तुलाई में डिब्बे का वजन शामिल नहीं किया जा सकता।
  • पैकिंग वस्तुओं पर निर्माता का नाम, पता, वस्तु की शुद्ध तौल एवं कीमत कर सहित अंकित हो। साथ ही पैकिंग का साल और महीना लिखा होना चाहिए।
  • पैकिंग वस्तुओं पर मूल्य का स्टीकर नहीं होना चाहिए।

फीस ब्याज समेत लौटाई
जिला उपभोक्ता फोरम ने एक महत्वपूर्ण फैसले में चार दिन के बाद कोचिंग न लेने पर संस्थान को छात्र द्वारा जमा फीस मय ब्याज के लौटाने के निर्देश दिए। मामला खातीवाला टैंक क्षेत्र निवासी विश्वजीतसिंह हाड़ा का है। उन्होंने मनोरमागंज की कैटेलाइजर एडवेंचर कोचिंग इंस्टिट्यूट से कोचिंग शुरू की थी, लेकिन चार दिन अटेंड करने के बाद ही उनका चयन देवी अहिल्या विवि की आईटी शाखा में हो गया। इस पर हाड़ा ने कोचिंग इंस्टिट्यूट से जमा फीस 15 हजार रुपए वापस मांगी, लेकिन प्रबंधक ने ये कहते हुए देने से इनकार कर दिया कि जमा की गई फीस वापसी योग्य नहीं है। इस पर उन्होंने उपभोक्ता फोरम की शरण ली। फोरम ने आदेश दिया कि कोचिंग इंस्टिट्यूट छात्र को जमा फीस मय ब्याज के लौटाए।

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