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पवित्र धर्म को दुनिया में शर्मशार कर रहे हैं धर्म के ठेकेदार

तु लसीदास, रैदास, चैतन्य, कबीर, रहीम, गुरु रामदास, संत तुकाराम, गजानन महाराज, शिर्डी के सांईबाबा, संत ज्ञानेश्वर, स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी के इस पवित्र देश में व भारत की पवित्र देवीय भूमि पर जहां हिमराज हिमालय, जीवनदायिनी मां गंगा, नर्मदा, यमुना, कृष्णा, कावेरी जैसी कल-कल बहती नदियां, पवित्र घाट, सुरम्य व जड़ी-बूटियों से सुसज्जित घने जंगलों, तपस्या की कंदराओं, विशाल पर्वत श्रेणियों में धर्म के नाम पर ये कौन लोग अपने ऐशो-आराम व अय्याशी के अड्डे जमाए बैठे हैं, जहां मादक पदार्थों, गांजा-भांग, चरस, हेरोइन की धूनी रमाए, सुरा-सुंदरी और सेक्स का भोग लगाते हुए देशी-विदेशी लोगों के साथ अध्यात्म व धर्म के नाम पर भोग में लिप्त हैं। करोड़ों-अरबों की काली कमाई करने वाले अपराधिक व्यापारियों व उद्योगपतियों के लिए राजनीतिक सत्ता के गलियारों में दलाली में लिप्त, समाज में धर्म के नाम पर सांप्रदायिकता का जहर घोलते हुए अकर्मण्य इन तथाकथित साधु-संतों, महंतों, स्वामियों, साध्वियों को भगाओ यहां से। हजारों साल से धर्म व समाज को अभिशप्त कर दिया है इन लुटेरे और डाकुओं से बदतर शुक्राचार्य की औलादों ने।
इंसानों और जानवरों में एक बुनियादी फर्क है। जानवरों की जीवनशैली प्राकृतिक है। कोई नीति, नियम व मर्यादाएं नहीं है। ना ही कोई संवैधानिक या वैधानिक सत्ता इन्हें विचलित करती है, जो ताकतवर होगा, वह कमजोर को अपना आहार बना सकता है। इसलिए जानवरों की व्यवस्था को जंगलराज कहते हैं। इस राज का अपना कोई धर्म नहीं होता है। यहां पर सिर्फ चरित्र होता है। सांप का, लोमड़ी का, चीते का, भेडिय़ा का, शेर का, कौए का, बिच्छू का, मगरमच्छ का, गीदड़ का, सियार का इत्यादि। यह चरित्र किसी धर्म या नैतिकता के आवरण से ढंका नहीं होता है। ना ही किसी संवैधानिक या वैधानिक या किसी कानून को मानता है। ना ही नियंत्रित होता है। इसलिए इन्हें जानवर कहा जाता है। दूसरी ओर इंसान, ये कहता तो अपने आपको इंसान ही है, परंतु आज के संदर्भ में देखा जाए या प्राचीन संदर्भ में इसके चरित्र अलग-अलग जानवरों से मिलते हैं। या उन्हीं चरित्रों का रूपण है। यह सिर्फ और सिर्फ उच्चकोटि का जानवर है, क्योंकि इसके पास बुद्धि है। यह किसी आचरण, नीति, नियम, मर्यादाओं, संवैधानिकताओं, वैधानिकताओं से अपने आपको और समाज को संचालित करने की व्यवस्था बनाता है और उसकी आड़ में उसी पाशविकता और जंगलराज की तरह कमजोरों का शोषण कर उन्हें अपना आहार बनाता है।
इसी तरह की दो व्यवस्थाएं आदिकाल से मानव समाज को नियंत्रित करने के लिए बनाई गई हैं। पहली धर्म और दूसरी राजनैतिक सत्ता। यदि पिछले 1000 साल के भारत के इतिहास को देखें तो दोनों ही व्यवस्थाओं ने सिर्फ और सिर्फ आम नागरिक का शोषण किया है और वो भी पूरी तरह से अमानुष व पाशविक नियमों व नीतियों से। कभी भगवान का डर बताकर या कभी उसका प्रतिनिधित्व करने का दंभ बताकर और डराने के इस समस्त नियमों, नीतियों को धर्म का आवरण पहना दिया और इसी डरी हुई भोली-भाली जनता का इस्तेमाल राजनीतिक ताकतवर लोगों ने अपना साम्राज्य और इन पर शासन करने के नाम पर कानून बनाकर न सिर्फ टैक्स के रूप में इनका आर्थिक शोषण किया, वरन् इनके नागरिक अधिकारों को भी कुचला गया। एक हजार साल से ये एक-दूसरे का साथ दे रहे हैं। जनता को लूटने में कभी भगवान का डर बताकर, कभी कानून का। ये भोग-विलास, अय्याशी, सुरा-सुंदरी व सेक्स के अलावा मादक पदार्थों के सेवन से लेकर इन्हें बेचने तक में लिप्त हैं। आज तक न येे आम जनमानस में देशभक्ति का जज्बा जगा पाए, ना ही आडंबरों, कुरीतियों व रूढ़ीवादी रीति-रिवाजों और विचारधाराओं को हटाने में सफल हो पाए। इन दोनों व्यवस्थाओं में, खासकर धर्म के ठेकेदारों, शंकराचार्र्यों, मठाधीशों, संतों, गुरुओं व तथाकथित बाबाओं ने इस देश में घृणित जातिप्रथा, छुआछूत, सांप्रदायिकता, अंधविश्वास, आडंबर, अशिक्षा, दूषित पर्यावरण, पवित्र नदियों को धर्म के नाम पर अपवित्र और दूषित बनाने के अलावा कुछ नहीं किया है। भगाओ इनको मंदिरों, मठों व नदियों के किनारों से। खाली कराओ इनके अवैध कब्जा कर जमीन पर बनाए गए ऐश व अय्याशी के अड्डों को।

दुनिया भर में फैला इस्लामिक आतंकवाद भी धर्म की आड़ में

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आज दुनिया भर में फैला इस्लामिक आतंकवाद भी धर्म की आड़ में पूरी दुनिया को भयभीत किए हुए है। अरब देश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, फिलीस्तीन, सीरिया व अन्य इस्लामिक देशों की सरकारें मस्जिदों, मदरसों में बैठे तथाकथित मुस्लिम धर्म के ठेकेदारों के प्रमुख, काजी, उलेमाओं के फतवों व निर्देशों के हिसाब से चलती हैं व कानून बनाती हैं। जो लोग इनके खिलाफ होते हैं, वे लोग न सिर्फ उनके खिलाफ वरन् उसके देश के खिलाफ हिंसा व युद्ध छेडऩे तक से गुरेज नहीं करते हैं, जो धार्मिक सत्ता को राजनीतिक सत्ता में बदलने का खतरनाक खेल है।
कानून का उल्लंघन फैशन बना
संतों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हो रहे हैं, पर धर्म के नाम पर कानून की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कुछ ऐसा ही हाल दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के साथ नजर आ चुका है। तमाम गैर जमानती वारंटों के बावजूद दिल्ली पुलिस उन्हें अदालत के सामने नहीं पेश नहीं कर पाई थी। दिल्ली पुलिस को जो डर था, वही डर हिसार में सच साबित हुआ। आश्रम के अंदर और बाहर समर्थकों ने इसे नाक का सवाल बना लिया था, जबकि देश के कानून के मुताबिक गुनाह और बेगुनाही अदालत में साबित हो सकती है, लेकिन भारत में आस्था के नाम पर कानून का उल्लंघन करना जैसे फैशन बन गया है। रात्रि जागरणों, भजन भंडारों, धार्मिक प्रायोजनों के नाम पर अवैध वसूली, चंदाखोरी, लाउड स्पीकरों से शोरगुल के अलावा मंदिर-मस्जिद बनाने के नाम पर सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कानून की धज्जियां उड़ाना धार्मिक संगठनों व धार्मिक गुरुओं का फैशन सा बन गया है।

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