- अयोग्य व अप्रशिक्षित डॉक्टर कहीं मुख्य वजह तो नहीं है कोरोना संक्रमित मरीजों की मृत्यु दर बढ़ाने में!?
- फर्जी, झोलाछाप, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक व जनरल प्रेक्टिशनर, जूनियर प्रेक्टिशनर भी कर रहे हैं कोरोना संक्रमित मरीजों का ईलाज!?
- बिना पैथालाजी जांच के लगा रहे हैं रेमडेसिवीर व अन्य महंगे इंजेक्शन! दे रहे हैं हाईपावर दवाइयां और ट्रायल एंड एरर मेथड अपना रहे हैं ईलाज में!
@ प्रदीप मिश्रा, री-डिस्कवर इंडिया न्यूज
इंदौर। पिछले दो महीने से अचानक कोरोना संक्रमित मरीजों में तेजी से वृद्धि पूरे भारत में देखने को मिल रही है। इस दूसरी कोरोना लहर में मृत्यु दर भी असामान्य रूप से तेजी से बढ़ रही है। कहीं इसकी मुख्य वजह अयोग्य, अप्रशिक्षित व झोलाछाप डॉक्टर व अस्पतालों और पैथालॉजी का जूनियर स्टाफ तो नहीं है! जिनके पास कोई वैधानिक मेडिकल की डिग्री व अनुभव नहीं हैं, वो भी बिना किसी जांच व मरीज की मेडिकल हिस्ट्री व कंडिशन को बिना जांचे सीधे कोरोना संक्रमित मरीजों का ईलाज एलोपैथिक दवाइयों व इंजेक्शनों के माध्यम से गांव, कस्बों, तहसीलों और शहरों में बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। दूसरी तरफ शहरों में हृदय रोग विशेषज्ञ, स्त्री रोग विशेषज्ञ, यूरोलाजिस्ट, डारमेटोलाजिस्ट, शिशु रोग विशेषज्ञ व जनरल प्रेक्टिशनर भी कर रहे हैं कोरोना संक्रमितों का ईलाज! यह कैसे संभव है!?
अयोग्य, अप्रशिक्षित व झोलाछाप डॉक्टर ले रहे हैं प्रायवेट अस्पतालों, नर्सिंग होम व अयोग्य पैथालाजी सेंटर से कमिशन व दलाली!?
इंदौर में 15 से 20 बड़े अस्पतालों के अलावा सैकड़ों प्रायवेट नर्सिंग होम, क्लीनिक और अस्पताल चल रहे हैं। पूरे शहर में मात्र 20 से 25 प्रशिक्षित व अनुभवी डॉक्टर हैं जो कोरोना संक्रमित मरीजों का सही तरीके व सही पैथालाजिकल जांच से ईलाज कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ अधिकांश अस्पतालों में जूनियर डॉक्टर व प्रशिक्षु डॉक्टरों के माध्यम से ईलाज किया जा रहा है। तकरीबन सभी प्रायवेट अस्पतालों व नर्सिंग होमों में बाहर से डॉक्टर बुलवाए जाते हैं। कई अयोग्य, फर्जी, झोलाछाप, होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक व जनरल प्रेक्टिशनर, जूनियर प्रेक्टिशनर के अलावा गली मोहल्लों में क्लीनिक लेकर बैठे डॉक्टर इन प्रायवेट अस्पतालों में कमिशन, दलाली के लिए मरीजों को रैफर करते हैं। जहां पर ट्रायल एंड एरर मेथड को अपनाकर ईलाज किया जाता है। हद तो तब हो जाती है जब ये अयोग्य और अशिक्षित डॉक्टर मरीजों को रेमडेसिवीर व अन्य 40 हजार रुपए तक के इंजेक्शन भी बिना किसी पैथालाजिकल जांच के लगाने से भी नहीं चूकते हैं। इन सबके साइट इफेक्ट और जरूरत न होने की वजह से उपयोग में लाए जाने पर मरीज की हालत और ज्यादा बिगडऩे लगती है व असमय मृत्यु का शिकार हो जाता है। यह सब सिर्फ पैसा कामने के अभूतपूर्व अवसर के रूप में भुनाया जा रहा है।
गली-मोहल्लों के क्लीनिक कर रहे हैं कोरोना संक्रमित मरीजों का ईलाज!?
एक सामान्य मरीज सबसे पहले अपने निकट के डॉक्टर को संपर्क करता हैं, जो मरीज का शुरुआती ईलाज कई बार बिना किसी कोरोना जांच के शुरू कर देते हैं और फिर तीन-चार दिन गुजरने के बाद कोरोना की जांच करवाते हैं। उसके बाद कोरोना संक्रमित मरीजों के उपयोग में आने वाली दवाइयों और इंजेक्शनों का उपयोग करने लगते हैं, लेकिन जब मरीज की हालत बिगडऩे लगती है तब उसे बड़े अस्पतालों और बड़े डॉक्टरों के पास भेजकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। सरकार को चाहिए कि वह कोरोना संक्रमित मरीजों के लिए योग्य, प्रशिक्षित व अनुभवी डॉक्टरों की लिस्ट को सार्वजनिक करें, जिससे कोरोना संक्रमित मरीज को योग्य व प्रशिक्षित डॉक्टर व अस्पताल के बारे में सही जानकारी हासिल हो सके, जिससे उसे सही डॉक्टर व अस्पताल चयन करने में आसानी हो।
कुकुरमुत्तों की तरह फैली पैथालाजी एवं कलेक्शन सेंटर!?
इसी तरह शहर में सैकड़ों की तादाद में पैथालाजी व सेंपल कलेक्शन सेंटर चल रहे हैं। कई अयोग्य व जूनियर लड़कों के माध्यम से घरों से ही सेंपल कलेक्ट किए जा रहे हैं। कई पैथालाजी में प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है। एक ही एमबीबीएस एमडी के नाम पर कई पैथालाजी लैब शहर के विभिन्न हिस्सों में संचालित हो रही है! सेंपल की जांच करने वाला नर्सिंग स्टाफ विधिवत रूप से प्रशिक्षित नहीं होता है। 10वीं, 12वीं पास लड़के जांचे करते हैं। उन्हीं की जांचों के आधार पर रिपोर्ट बनती है और ईलाज होता है। यह भी मुख्य वजह है कि कोरोना संक्रमित मरीजों की असमय व अचानक मृत्यु की!?
@ प्रदीप मिश्रा, री-डिस्कवर इंडिया न्यूज