@प्रदीप मिश्रा री डिस्कवर इंडिया न्यूज इंदौर

क्या मैं इस देश का नागरिक कहलाने का अधिकार रखता हू?

यह देश मेरी मातृभूमि है क्योंकि मैने इस देश में जन्म लिया है और यह मेरे पुरखों और मेरे माता पिता की भी मातृभूमि है।

लोकतांत्रिक मेरे देश भारत में मुझे सरकार या सिस्टम से मेरे संवैधानिक हक और कानूनी अधिकार हमेशा प्रार्थना, भीख, खैरात, दया, सहानुभूति, निवेदन, कृपा, मेहरबानी, मी लॉर्ड…… जैसे शब्दों के मौखिक या लिखित इस्तेमाल से ही क्यो मिलते हैं? मै आज़ाद नागरिक हूं या गुलाम नागरिक हूं?

देश मे “शिक्षित भारतीय नागरिक” और “देशभक्त या राष्ट्रवादी” कहने का अधिकार उसी आदमी को है, जो न सिर्फ देश के कानून और संविधान से प्राप्त अधिकारों को जानता है, वरन् उन्हें सरकार और सिस्टम से लेने की हिम्मत, हौसला और कैसे लेना है उसकी जानकारी रखता है। 
बाकी या तो गुलाम है! या व्यवसायी! या लुटेरे! या देशद्रोही?

भारत में आज भी 90 फीसदी जनता जो मतदान का प्रयोग करती है, उसे न तो यह पता है की “सरकार” का मतलब क्या है? और न ही यह पता है कि कानून एवं संविधान से उसे क्या अधिकार प्राप्त है!

क्योंकि किसी नेता, सरपंच, पार्षद, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या राजनैतिक पार्टी ने उन्हें इसके बारे में कभी कुछ बताया ही नहीं है!

और न ही किसी परिवार, समाज, स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी ने धर्म, संस्कृति और संस्कारों की तरह इस ज्ञान की घुट्टी पिलाई है!

क्योंकि सिस्टम को यह पता है कि जिस दिन मतदान करने वाली जनता को यह ज्ञान हो गया कि सरकार से कानूनी और संवैधानिक रूप से वो क्या क्या ले सकते हैं, उस दिन नेता, पार्षद, विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री के साथ पूरी सरकार और सरकार के समस्त अधिकारी गुलाम होंगे और जनता खुशहाल और आज़ाद होगी। 

@प्रदीप मिश्रा री डिसकवर इंडिया न्यू्‍ज इंदौर

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