@री डिस्कवर इंडिया न्यूज इंदौर
कानून की आड़ में पत्रकारों को डराने, दबाने और जेल भेज कर उसके भविष्य और सम्मान के साथ घिनौना खेल, खेल रहे है भ्रष्ट और अपराधिक सफेद पोश? यह देश के लोकतंत्र के लिये बहुत खतरनाक हैं।

पत्रकारों, संपादकों और प्रेस क्लबों में यदि पत्रकारिता और पत्रकारों के हित के लिए वाकई कोई जज्बा, जुनून और जमीर हो तो अपनी बौद्धिक नपुंसकता को त्याग कर एक वीर की तरह सड़कों पर निकल कर अंग्रेजों के जमाने के काले कानूनों के खिलाफ हल्ला बोल देना चाहिए़।
पत्रकारों की पत्रकारिता और खबरों से संबंधित किसी कृत्य के खिलाफ यदि कोई शिकायत है तो उसे राज्य या केंद्र की पुलिस नहीं। सिर्फ न्यायालय उस पर संज्ञान ले। यह कोर्ट कंप्लेन केस होना चाहिए़, जहां दोनों पक्षों को अपनी बात कहने का अधिकार हो। और न्यायालय फैसला करे कि कौन अपराधी हैं।
एक तरफा पुलिस करवाई नहीं होना चाहिए। क्योंकि यह संविधान से प्राप्त अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़ा मामला हैं। और पत्रकार और पत्रकारिता लोकतंत्र की आत्मा है। जनता की आवाज है।
बंदूक, चाकू, तलवार, दिखाकर या उनसे मारकर,अपहरण कर, जान से मारने की धमकी देकर, निजी और अंतरंग क्षणों की तस्वीरें या वीडियो दिखाकर, झूठी और मनगढ़ंत खबरें प्रकाशित करने का डर दिखा कर या शारीरीक, आर्थिक और सामाजिक क्षति पहुंचाकर कोई व्यक्ति बेइमानी से, किसी व्यक्ति या महिला या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से कहकर कोई धनराशि या मूल्यवान संपति प्राप्त करता है, या प्राप्त करने की चेष्टा करता हैं तो यह कानून दृष्टि से एक्स्टॉर्शन (Extortion) का अपराध कहलाता हैं।
लेकिन यदि कोई पत्रकार, संपादक या मीडिया कर्मी अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में यदि कोई ऐसी खबर जो तथ्यों और सबूतों के साथ सत्य हो और समाज के बड़े वर्ग, या उसकी संपति और सभी संवैधानिक और न्यायिक अधिकारों के हित में हो, राज्य और देश के हित में हो को लगातार प्रकाशित करता हो और उससे डरकर कोई अपराधिक सफेदपोश अपनी पहुंच, धनबल और राजसत्ता के बल पर मौजूदा कानून की परिभाषा में दो गवाहों के आधार पर एक्सटार्शन की एफ आई आर लिखवा सकता है। पुलिस गिरफ्तार कर लेती हैं और न्यायालय जेल भेज देता है! यह कानून कहां तक जायज है? यह कानून शोषण का अंग्रेजों के जमाने का काला कानून है, जो आज भी है।
बिना कोई धनराशि या मूल्यवान संपति दिए पत्रकारों के खिलाफ “ब्लैकमेलिंग” की धारा में केस पुलिस दर्ज कर लेती है? ये कानून किसने और किस प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर बनाया है? पत्रकार कोई हिस्ट्रीशीटर, या गैंगस्टर या पुलिस रिकॉर्ड में क्रिमिनल तो होता नहीं है।
ऐसा क्या काला, पीला या गैरकानूनी काम पत्रकार के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने वाला सफेद पोश कर रहा था उसकी भी पहले जांच कर उन सफेदपोशों के खिलाफ एफ आई आर होना चाहिए।
बड़े धन्नासेठों के राष्ट्रीय अखबार, चेनल के मालिक और सत्ता के गलियारों के इर्द गिर्द घूमने वाले वरिष्ठ और तथाकथित पुरस्कारों से नवाजे गए दलाल बौद्धिकता के नपुंसक वरिष्ठ पत्रकार, संपादक और स्वामी, मुद्रक, प्रकाशक और प्रधान संपादक सरकारों से करोड़ों अरबों रुपए की रिश्वत विज्ञापन के नाम पर और अन्य मूल्यवान संपति बेइमानी से प्राप्त कर लेते है या सरकार उन्हें नवाज देती हैं। क्या यह समाज, राज्य और देश के लिए सबसे खतरनाक रिश्वत और वसूली का अपराधिक कृत्य नहीं है?
ऐसे कानूनों के खिलाफ पूरे प्रेस जगत के पत्रकारों, संपादकों और मीडिया कर्मियों को तत्काल सड़क पर आना चाहिए।
@प्रदीप मिश्रा री डिस्कवर इंडिया न्यूज इंदौर