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अभी तो “शिवाजी” है महापौर पुष्यमित्र भार्गव का बेटा “संघमित्र भार्गव”!!

भारत के इतिहास के महानायकों में छत्रपति शिवाजी का नाम उनकी वीरता और बहादुरी के लिए स्वर्ण अक्षरों में सदा के लिए अंकित हैं। शिवाजी महाराज में वीरता, बहादुरी के गुण बचपन से ही कूट कूट कर भरे हुए थे! उनके पिता शाह जी भोसले उस समय मुगल सल्तनत में सेनापति के पद पर थे और बीजापुर रियासत के “जागीरदार” थे जिसे वर्तमान लोकतांत्रिक भाषा में “महापौर” कह सकते है।
शिवाजी जब मात्र 16 साल के थे तब एक दिन उनके जागीरदार पिता शाह जी भोंसले उन्हें उस समय के बादशाह के दरबार ले गए। जहां शिवाजी के पिता जागीरदार शाह जी भोसले ने बादशाह के सामने झुककर सलामी दी और बादशाह की शान में कसीदे गढ़े!! लेकिन बहादुर किशोर शिवाजी ने बादशाह को सलामी देने और शान में कसीदे पढ़ने से इंकार कर दिया। और बादशाह के खिलाफ विद्रोह का ऐलान कर दिया! सत्ता और बादशाह के प्रति गुलामी शिवाजी के पिता में थी लेकिन वीर और बहादुर शिवाजी में नहीं।
400 साल बाद ठीक वैसा ही दृश्य इंदौर शहर में देवी अहिल्या विश्व विद्यालय के सभागृह में घटित हुआ!
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता के मंच पर जिस समय महापौर पुत्र संघमित्र मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन और रेलवे की खामियां, प्रोजेक्ट की लेटलतीफी, मोदी सरकार का वादे पर खरा न उतरना और जमीन अधिग्रहण में भ्रष्टाचार पर पूरे आत्मविश्वास और तथ्यों के साथ कटाक्ष किया!
उस समय मंच पर उनके पिता इंदौर महापौर पुष्यमित्र भार्गव के अलावा मंच पर मुख्यमंत्री मोहन यादव और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर मौजूद थे। इसके अलावा शहर अध्यक्ष, कई नामचीन और बाहुबली विधायक और मंत्री उस मंच पर बैठे थे। जिनमें इतना साहस नहीं हैं कि वो अपने बादशाह मोदी और उनकी सल्तनत की किसी नीति, योजना या प्रोजेक्ट की खुलेआम तो बहुत दूर की बात है, खुसुर पुसुर में अकेले में भी बात करने की हिम्मत पैदा कर सके!!
संघमित्र भार्गव जैसे युवा ही भारत का भविष्य है, और वीर शिवाजी और महाराणा प्रताप के असली वारिस। जय हो संघमित्र।
@प्रदीप मिश्रा री डिस्कवर इंडिया न्यूज इंदौर

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